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दुनिया का एकमात्र जीवित बॉर्डर पिलर, इसकी कहानी है दिलचस्प

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दुनिया का अनोखा बॉर्डर पिलर

भारत-पाकिस्तान सीमा पर एक पीपल का पेड़ है, जो एक सीमा स्तंभ को पूरी तरह से अपनी जड़ों में समा चुका है। यह बॉर्डर पिलर अब पेड़ की छाल पर पेंट किया गया है।

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क्या है जीवित पिलर की कहानी?

इस पिलर का क्रमांक 918 है और यह सुचेतगढ़ चेकपोस्ट पर स्थित है। पहले यह एक सामान्य सीमा स्तंभ था, लेकिन जैसे-जैसे पेड़ बड़ा हुआ, उसने इसे पूरी तरह घेर लिया।

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भारत-पाकिस्तान सीमा पर पहला जीवित पिलर

यह शायद दुनिया का एकमात्र जीवित बॉर्डर पिलर है, जो अब एक पेड़ का हिस्सा बन चुका है। इसे देखकर यह अहसास होता है कि सीमा और शांति एक ही धरती पर हो सकते हैं।

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बॉर्डर पितर बने पेड़ का इतिहास

यह पीपल का पेड़ सालों पुराना हो सकता है और इसके तने में अब भी पिलर के निशान दिखाई देते हैं, जो धीरे-धीरे मिट रहे हैं।

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भारत-पाक सीमा पर शांति का प्रतीक

भारतीय बीएसएफ और पाकिस्तानी रेंजर्स ने इस पेड़ को काटने का नहीं सोचा। इसके बजाय, उन्होंने पिलर को पेड़ के तने पर पेंट किया, जिससे यह सीमा का एक अद्भुत प्रतीक बन गया।

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जम्मू के पास स्थित यह जीवित बॉडर पिलर

यह पेड़ जम्मू शहर से लगभग 28 किलोमीटर दूर, सुचेतगढ़ गांव में स्थित है, जो भारत-पाकिस्तान सीमा पर है।

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जीवित बॉर्डर पिलर की तीन शाखाएं भारत की ओर

पेड़ की तीन प्रमुख शाखाएं भारत की ओर झुकी हुई हैं, जबकि दो पाकिस्तान की ओर। यह सीमा के दोनों देशों को जोड़ने जैसा प्रतीत होता है।

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जीवित बॉर्डर पिलर क्यों आकर्षित करता है पर्यटकों को

यह पेड़ अब एक पर्यटन स्थल बन चुका है। पर्यटक इसे देख कर सीमा के इतिहास को समझते हैं और इस अद्भुत पेड़ की खासियत पर हैरान रह जाते हैं।

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स्थानीय जीवन की कठिनाइयों के बीच आशा का प्रतीक

सुचेतगढ़ के लोग अक्सर सीमा पर तनाव का सामना करते हैं, लेकिन इस पेड़ की मौजूदगी उन्हें एक अद्भुत आशा और शांति का संकेत देती है।

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भारत-पाकिस्तान की शांति की उम्मीद

इस पेड़ और पिलर की कहानी यह दर्शाती है कि सीमा भी शांति और मित्रता का प्रतीक हो सकती है। उम्मीद की जाती है कि यह क्षेत्र भविष्य में पर्यटन और शांति का केंद्र बनेगा।

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