रावण, आ रहा हूं, न्याय के दो पैरों से अन्याय के दस सिर कुचलने। आ रहा हूं अपनी जानकी को ले जाने। आ रहा हूं अधर्म का विध्वंस करने।
आज मेरे लिए मत लड़ना। उस दिन के लिए लड़ना, जब भारत की किसी बेटी पर हाथ डालने से पहले दुराचारी तुम्हारा पौरुष देखकर थर्रा उठेगा। लड़ोगे?
आगे बढ़ो और गाढ़ दो अहंकार की छाती में विजय का भगवा ध्वज।
उनकी चौखट से ले आया था मुझे। जानकी उस चौखट पर तभी आएगी, जब राघव लेने आएंगे और वो आएंगे।
मैं इक्ष्वाकु वंशज राघव आपकी छाती में ब्रह्मास्त्र गाढ़ने के लिए विवश हूं।
एक दशानन 10 राघव पर भारी है।
पाप कितना भी बलवान क्यों ना हो, अंत में जीत सच की ही होती है।
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