वाराणसी में बनने वालीं बनारसी साड़ी अपनी बारीक जरी बुनाई और भारी ब्रोकेड डिजाइनों के लिए फेमस हैं। इसे शादियों के स्पेशल अवसरों पर पहना जाता है।
पश्चिम बंगाल में बनने वाली बलुचरी साड़ी अपने पल्लू पर पौराणिक कथाओं और महाकाव्य सीन के इंट्रीकेट डिजाइनों के लिए जानी जाती है। यह साड़ी कला और संस्कृति का प्रतीक है।
साउथ इंडिया में बनने वालीं कोरा सिल्क साड़ी एक हल्की और ट्रांसपैरेंट बनावट होती है। यह जरी बॉर्डर के साथ आती है। इसे विशेष रूप से गर्मियों में पहना जाता है।
हैंड क्राफ्ट वर्क से सजी पैठणी साड़ी हमेशा बहुत शानदार लगती है। इसमें इंट्रीकेट मोर और फूलों के डिजाइंस देखने को मिलते हैं। यह साड़ी महाराष्ट्र की खास पहचान है।
मध्य प्रदेश में बनने वालीं चंदेरी साड़ियां लाइटवेट और कंफर्टेबल होती हैं। इसमें सोने और चांदी की जरी का महीन काम होता है। इसमें पारंपरिक डिजाइनों का मिश्रण देखने को मिलता है।
यह साड़ी अपनी मोटी बुनाई, खूबसूरत रंग और इंट्रीकेट जरी के काम के लिए जानी जाती है। कांजीवरम साड़ी को शादी और अन्य अवसरों के लिए बेस्ट माना जाता है।
कर्नाटक में बनने वाली मैसूर सिल्क साड़ी अपनी चिकनी और सॉफ्ट बनावट के लिए जानी जाती हैं। इसमें जरी बॉर्डर की डिटेलिंग होती है। यह साड़ी सादगी और शान का प्रतीक है।
मोगा सिल्क और पाट सिल्क से बनी असम सिल्क साड़ियां अपनी चमकदार बनावट और पारंपरिक डिजाइनों के लिए मशहूर हैं। इन साड़ियों में सुनहरी रंगत होती है।
गुजरात में बनने वाली पटोला साड़ी दोहरे इकत टैक्निक में बुनी जाती है और इसमें इंट्रीकेट ज्यामितीय पैटर्न होते हैं। इसे अत्यधिक समय और मेहनत से तैयार किया जाता है।
पश्चिम बंगाल बिहार और झारखंड में टसर सिल्क साड़ी अपनी नैचुरल सुनहरी चमक के लिए जानी जाती है। यह साड़ी हल्की होती है और इसे पारंपरिक व मॉडर्न दोनों ही तरीकों से पहना जा सकता है।