बनारसी साड़ी यूपी के बनारस में बनाए जाते हैं। वहीं कांजीवरम साड़ी तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर में बनाई जाती हैं। यह साड़ी दक्षिण भारत साड़ी का प्रतीक माना जाता है।
बनारसी साड़ी रेशम के धागे के बनाई जाती है। इसमें जरी (सोने और चांदी के धागे) का काम होता है।
कांजीवरम साड़ी में शहतूत के रेशम का उपयोग होता है, जो इसे भारी और मोटा बनाता है। इसमें सोने और चांदी की जरी का काम बड़े पैमाने पर किया जाता है।
बनारसी साड़ी को कई पैटर्न में बनाया जाता है। इसका वजन हल्का होता है। जिसकी वजह से इसे कैरी करना आसान होता है।
कांजीवरम साड़ी हैवी होता है। इसपर हैवी जरी का काम किया जाता है। हालांकि यह साड़ी भी पहनने में काफी एलिगेंट लुक क्रिएट करता है।
बनारसी साड़ी पर मुगल काल की वास्तुकला और कला से प्रेरित डिज़ाइन होते हैं। इसमें फ्लोरल पैटर्न, बेल बूटे और जटिल मोटिफ्स का इस्तेमाल किया जाता है।
कांजीवरम साड़ी के डिज़ाइन में मंदिर, देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं और प्रकृति के तत्वों की झलक मिलती है। इसमें बुनाई का काम ज्यादा मोटा और जटिल होता है।
बनारसी साड़ी में कई रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, और इसके पैटर्न हल्के और मध्यम रंगों में होते हैं। इसके पैटर्न जरी और धागे के काम पर बेस्ड होते हैं।
कांजीवरम साड़ी का रंग चटक होता है। जैसे लाल, हरा, नीला और गोल्डन। साड़ी के बॉर्डर और पल्लू पर हैवी काम किया जाता है। यह ड्यूल शेड्स में जाता होते हैं।