पाटन एक गुजरात की जगह है जहां की पटोला साड़ी काफी फेमस है। इसलिए पटोला के आगे पाटन शब्द जुड़ा है। पाटन पटोला साड़ी का इतिहास 900 साल पुराना है।
12वीं शताब्दीमें सोलंकी राजवंश के राजा कुमारपाल ने महाराष्ट्र के कुछ बुनकरों को पाटन में बसाने का काम किया था। यहीं से शुरू हुई पटोला का शानदार कहानी।
पटोला प्योर रेशमके धागे के बनाया जाता है। कहा जाता है कि इसे पहनने वाले को दैवीय अनुभव होता है। यह साड़ी पहले और आज भी काफी महंगी है। एक आम इंसान इसे खरीद नहीं सकता है।
पटोला इतना सॉफ्ट और कलरफुल होता है कि मलेशिया और इंडोनेशिया में इसे भेजा जाता है। दोनों देश पटोला के सबसे बड़े खरीदार हैं।
पटोला साड़ी पहले रानियां पहना करती थी। पहले भी इसे स्टेटस सिंपल माना जाता था। आज भी ऑरिजनल पटोला साड़ी लाखों में आती हैं।तो सोच सकते हैं कि इसे कौन पहनता होगा।
आज पटोला साड़ी में आर्टिफिशल रंग भी इस्तेमाल होते हैं।लेकिन पहले नील, हल्दी, गेंदा का फूल और अनारके छिलका से रंग बनाया जाता है।x`
वैसे तो पटोला प्रिंट की साड़ी मार्केट में कम कीमत में मौजूद है। लेकिन ऑरिजनल साड़ी की बात करें तो इसकी कीमत 1 लाख से शुरू होकर 10 लाख के करीब जाती है।