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लाल-पीला नहीं, इस अनोखी कुमकुमी चूड़ियों के बिना अधूरी है बिहारी शादी!

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शुभता का प्रतीक

कुमकुमी चूड़ियां नारंगी और सुनहरे रंग की होती हैं, जो सुहाग और शुभता का प्रतीक मानी जाती हैं। यह नवविवाहित मुस्लिम दुल्हन के सुहाग की निशानी मानी जाती है। 

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सुहागन की पहचान है ये चूड़ियां

ये चूड़ियां खास तौर पर दुल्हन को पहनाया जाता है। इसे लड़के या लड़की वाले अपने सभी रिश्तेदारों को पहनाते हैं। इस कुमकुमी चूड़ी को शादी वाले घर में बच्चे से लेकर बड़े सभी पहनते हैं।

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पलंगतोड़ चूड़ियां क्यों कहते हैं?

इसे पलंगतोड़ चूड़ियां इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये बेहद नाजुक और पतली होती हैं। शादी के बाद रस्मों के दौरान इन चूड़ियों का टूटना नए जोड़े के सुखी वैवाहिक जीवन का शुभ संकेत है।

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दुल्हन और अन्य के चुमकुमी चूड़ी में अंतर

दुल्हन की कुमकुमी चूड़ी को सोने के कंगन के साथ बिना बताना के पहनाया जाता है। वहीं बाकी लोगों को बताना और दूसरे कंगनों के साथ सेट करके कुमकुमी चूड़ी पहनाया जाता है।

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कुमकुमी चूड़ियों की खासियत

कुमकुमी चूड़ियां हल्की और पतली होती हैं, लेकिन इनका चमकीला लाल रंग दुल्हन के हाथों को और भी सुंदर बना देता है। यह अन्य चूड़ियों के मुकाबले अलग और अनोखी दिखती हैं।

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कुमकुमी चूड़ियों का महत्व

कुमकुमी चूड़ियां सिर्फ एक आभूषण नहीं हैं, बल्कि बिहारी मुस्लिम संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। यह दुल्हन के लिए शुभता, परंपरा और नए जीवन की खुशियां लेकर आती हैं।

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