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कश्मीरी दुल्हनों की शान है देझूर, जानिए इसकी विरासत का राज!

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देझूर के बारे में

कश्मीरी पंडित दुल्हनों के लिए देझूर सिर्फ आभूषण नहीं, बल्कि उनकी विरासत और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली परंपरा का हिस्सा है।

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देझूर का ऐतिहासिक महत्व

देझूर कश्मीरी पंडित दुल्हनों की पारंपरिक कान की ज्वेलरी है। इसे शादी के दौरान दुल्हन को उसकी ससुराल से पहनाया जाता है, जो उसकी विवाहित स्त्री की पहचान और शुभता का प्रतीक है।  

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शुभता और आशीर्वाद का प्रतीक

देझूर को देवी पार्वती और शिव के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। इसे पहनने से दुल्हन को लंबे वैवाहिक जीवन और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

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पारंपरिक डिजाइन और धातु का महत्व

देझूर की डिजाइन गोल आकार में होती है, जो सृजन और अखंडता का प्रतीक है। यह आमतौर पर सोने या तांबे से बनाई जाती है,और इसमें विशेष कश्मीरी कला का प्रदर्शन होता है।

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पहनने का विशेष तरीका

देझूर को सोने के तारों (अथ) से दुल्हन के कान के छेद में पहनाया जाता है। यह तार लंबे होते हैं और गले तक लटकते हैं। यह नारी की सुंदरता और वैभव को दर्शाता है।

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पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत का हिस्सा

देझूर को अक्सर परिवार की बुजुर्ग महिलाएं अगली पीढ़ी को आशीर्वाद के साथ सौंपती हैं। यह पारिवारिक परंपरा और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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समृद्ध कश्मीरी संस्कृति का प्रतीक

देझूर कश्मीरी दुल्हनों के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक गर्व का प्रतीक है। यह न केवल एक आभूषण है बल्कि कश्मीर की संस्कृति और धार्मिक आस्था को जीवंत रखने का माध्यम भी है।

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