कांजीवरम साड़ी का इतिहास 400 साल पुराना है। तमिलनाडू के पास कांजीपुरम गांव में क्योंकि इन साड़ियों को बनाया जाता है इसलिए इनका नाम कांजीवरम है।
कांजीवरम साड़ी, मलबरी सिल्क और जरी के धागों से बनाई जाती है। इस साड़ी की कीमत 7000 से लेकर 2 लाख रुपय तक होती है। अगर बड़े डिजाइनर की कांजीवरम लेंगी तो कीमत 10-15 लाख हो सकती है।
जिस साड़ी पर चित्र बनें हों वो पट्टचित्र साड़ी होती है। ऐसे वैसे नहीं बल्कि mythology और folk चित्र बने होते हैं। एक पट्टचित्र साड़ी को बनने में कई महीनों का समय लगता है।
इस साड़ी पर हाथ से पेंटिंग की जाती है। ये खास साड़ियां उड़ीसा में बनायी जाती है। पट्टचित्र साड़ियों की कीमत 2000 रुपये से लेकर 40000 रुपये तक होती है।
जामदानी साड़ी शब्द दो शब्दों जाम और दानी को मिलाकर बना है। जाम का मतलब है फूल और दानी का मतलब होकी है गुलदस्ता। जामदानी साड़ी ढाका और बांगलादेश में बनायी जाती हैं।
इस साड़ी का जिक्र चाणक्या के अर्थशास्त्र में तीसरी सदी से मिलता है। तब से अब तक इस साड़ी की पहचान वैसे ही बरकरार है। इसे 2500 हजार से लेकर 10000 हजार रुपये तक में खरीद सकती हैं।
जिस साड़ी पर कलम से कारीगरी की जाती है उस साड़ी को कलमकारी साड़ी कहते हैं। इमली की शाखाओं से बनें पेन और चारकोल की पेंसिंल से इस कारीगरी की किया जाता है।
3 हजार साल पुरानी कारीगरी को आन्ध्रा और तमिलनाडू में बनाया जाता है। साड़ी के धागों को गाय के गोबर और दूध मिलाकर कलर बनाते हैं। इसकी कीमत 600 रुपये से लेकर 100,000 रुपये तक होती है।
गदवाल और तेलंगाना में खासकर बनाई जाने वाली ये साड़ी लाइट वेट होती है। ये साड़ी इतनी पतली और मुलायम होती है कि प्योर गड़वाल साड़ी तो माचिस की डिब्बी में भी पैक हो जाती है।
इस साड़ी का पल्ला और बॉर्डर अलग से बुना जाता है। इंडिया के अलावा इसकी डिमांड अमेरिका, लंदन और यूरोप के कई देशों में है। गदवाल सिल्क साड़ी 7000 रुपये से शुरू होकर लाखों तक बिकती है।