नीता अंबानी समेत भारत की तमाम महिलाओं को बनारसी साड़ी पहनना पसंद होता है। इसे पहनने के बाद चेहरे का नूर ही कुछ और होता है। इस साड़ी में भारत की संस्कृति झलकती है।
बनारस के ब्रोकेड और जरी वस्त्रों का सबसे पहला उल्लेख 19वीं शताब्दी में मिलता है। माना जाता है कि 17वीं शताब्दी में बनारस में रेशम ब्रोकेड बुनाई शुरू हुई।
मुगल काल में सोने और चांदी के धागों का उपयोग करके बनाए गए कपड़ों की खासियत को लेकर बनारसी कपड़ों की बुनाई शुरु की गई।
बनारसी साड़ी के लिए रेशम के धागे का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें सोने- चांदी के तारों का भी यूज होता है। हालांकि आज के दौर में सोने और चांदी के तारों का इस्तेमाल ऑर्डर पर होता है।
बनारसी साड़ी को बनाने में 3 दिन से लेकर 6 महीने तक का वक्त लग सकता है। कुशल कारीगर बनारसी साड़ी को बनाते हैं। एक साड़ी को बनाने में 3 कारीगर लगते हैं।
बुनाई पूरी हो जाने के बाद, साड़ी को फिनिशिंग के लिए भेजा जाता है। इसमें साड़ी को धोया जाता है, प्रेस किया जाता है और चमकाने के लिए कुछ और प्रक्रियाएं की जाती हैं।
तैयार बनारसी साड़ी की पहचान उसके भारीपन, जटिल डिजाइनों, और शानदार ज़री के काम से की जाती है। यह साड़ियां पारंपरिक विवाह, त्योहार, और अन्य महत्वपूर्ण अवसरों पर पहनी जाती हैं।
ऑरिजनल बनारसी साड़ी की कीमत की बात करें तो 20 हजार से लेकर कई लाख तक जाती है। वैसे मार्केट में अब कम कीमत की भी बनारसी सिल्क साड़ी मौजूद है।