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आखिर क्यों महिलाएं नहीं काटती कद्दू, जानें परंपरा से जुड़ी कहानी

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कद्दू में पाया जाता है कई पोषक तत्व

कद्दू में प्रोटीन, आयरन, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट,सोडियम , फोलेट, विटामिन सी और ई पाया जाता है। इसमें कैलोरी भी भरपूर मात्रा में होती है। सेहत के लिए यह काफी फायदेमंद सब्जी होता है।

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सनातन धर्म में कद्दू को लेकर कुछ नियम

सनातन धर्म में कुम्हड़ा को सात्विक पूजा में बलि का प्रतिरूप माना गया है। इसलिए महिलाओं से जुड़े कुछ नियम बनाए गए हैं।

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महिलाएं नहीं काटती

महिलाएं कुम्हड़ा को पहली बार में नहीं काटती हैं। पुरुष पहले उसपर चाकू लगाते हैं फिर महिलाएं काटकर उसकी रेसिपी बनाती हैं।

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स्त्री को माना गया है सृजनकर्ता

सनातन धर्म में स्त्री को सृजनकर्ता माना गया है। ना कि संहारकर्ता। वो जन्म देती है, वो मां है। इसलिए वो बलि नहीं दे सकती है। कुम्हड़ा बलि का प्रतिक होता है।

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कुम्हड़ा को अकेला नहीं काटा जाता है

कुम्हड़ा से जुड़ा नियम यह भी कि इसे अकेला नहीं बल्कि जोड़ा में काटा जाता है। अगर एक काटना है तो फिर नींबू या आलू के साथ उसे काटा जाता है।

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छत्तीसगढ़ में इसे ज्येष्ठ पुत्र माना गया है

छत्तीसगढ़ में इस सब्जी को बड़े सम्मान के साथ देखा जाता है। इसे ज्येष्ठ पुत्र माना जाता है। कई आदिवासी समाज की महिलाएं तो इसे बिल्कुल भी नहीं काटती हैं।

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कुम्हड़ा के पत्ते से लेकर फूल की रेसिपी

कुम्हड़ा एक ऐसी सब्जी है जिसके पत्ते का साग बनाने में और फूल का पकौड़ा बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। कुम्हड़ा की कई तरह की रेसिपी भी बनती है। जो काफी हेल्दी होती है।

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