एक मां अपनी बेटी को जब दामाद के हाथों में सौंपती है तो उम्मीद करती है कि वो उसका पूरा ख्याल रखेगा। ये भी उम्मीद होती है कि उसका दामाद उसके बेटे की तरह है जो इस फैमिली को भी देखेगा।
दामाद का कर्तव्य होता है कि वो ससुराल का मान बनाए रखें। उसे सास से कभी वो चीजें नहीं बोलनी चाहिए जो रिश्तों में खटास पैदा कर दें।
दामाद को सास से कभी ये नहीं कहना चाहिए कि आपकी बेटी को कोई काम नहीं आता है। बेटी की आलोचना सुनकर सास आहत हो सकती हैं।
दामाद को कभी अपने ससुराल के तौर-तरीके पर भी सीधे सवाल नहीं उठाना चाहिए। सास के घर के रीति-रिवाजों की निंदा करने से रिश्ते में दूरियां आ सकती हैं।
दामाद को सास की परवरिश पर भी सवाल नहीं उठानाच चाहिए। यह अपमानजनक हो सकता है और रिश्ते में कड़वाहट ला सकता है। बेटी को भी जब ये पता चलेगा तो आपसे दूरी बनाने लगेगी।
बुजुर्ग अपने तरीके से सहज रहते हैं, उन्हें बदलने की सलाह नहीं देना चाहिए। आपको अपने काम का तरीका बदलना चाहिए ये बातें कभी ना बोलें।
दामाद को कभी भी सास से ये नहीं कहना चाहिए कि आपको बच्चा संभालने नहीं आता है। उनकी परवरिश और अनुभव का सम्मान करें, आलोचना से बचें।
ये बात जितनी साधारण है, कभी-कभी सास को ऐसा महसूस करवा सकती है कि दामाद उनकी कमजोरी की ओर इशारा कर रहा है।
एक मां के लिए बेटी जितनी अपनी होती है उतना दामाद होता है। इसलिए उसे कभी नहीं बोलना चाहिए कि ससुराल में ज्यादा नहीं आ सकते हैं। यह बात सास को आहत कर सकती है।