चांद पर दिन का तापमान 123 डिग्री से ज्यादा और रात का -200 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला जाता है।
धरती से चांद का हमेशा एक ही हिस्सा (Side) दिखता है। 1959 में पहली बार जब रूस का स्पेसक्रॉफ्ट चांद के दूसरी ओर गया, तब इंसान उसका दूसरा हिस्सा देख पाए।
समुद्र में ज्वार-भाटा (टाइड) चांद के गुरुत्वाकर्षण की वजह से आता है। धरती का वो सिरा जो चांद के सबसे करीब होता है, वहां हाई टाइड (ज्वार) आता है।
इसी तरह धरती का जो हिस्सा चांद के सबसे दूर होता है, वहां लो टाइड यानी कि छोटी लहरें (भाटा) उठती हैं।
चांद पर गहरी घाटियां, पहाड़ और समतल जमीन बिल्कुल धरती की तरह ही है। टेलिस्कोप से देखने पर ये गड्ढे धरती से भी नजर आते हैं।
चांद में बड़े-बड़े और गहरे गड्ढे हैं। इनमें से कुछ तो इतने बड़े हैं कि उनमें 8848 मीटर ऊंचा पूरा का पूरा माउंट एवरेस्ट भी समा सकता है।
चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण काफी कम है। यही वजह है कि धरती की तुलना में वहां भार 1/6 है। यानी धरती पर चांद की तुलना में बेहद कम वजन होगा।
धरती से चंद्रमा की दूरी 3,84,000 KM है। वहीं चंद्रमा से धरती तक प्रकाश आने में करीब 1.3 सेकेंड का समय लगता है।
चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है। इसकी उत्पत्ति धरती के साथ ही करीब 4.5 अरब वर्ष पहले मानी जाती है।
नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर जब पहला कदम रखा, तो उनके पैर से जो निशान बने वो आज भी हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चांद पर वायुमंडल (हवा) नहीं है।