पश्चिम बंगाल में हुए कंचनजंगा ट्रेन हादसे के बाद एक बार फिर रेलवे के कवच सिस्टम की मांग जोर पकड़ने लगी है।
अगरतला-सियालहद रूट पर अगर ये सिस्टम इंस्टॉल होता तो शायद लोगों की जान बचाई जा सकती थी। आखिर क्या है कवच सिस्टम और ये कैसे करता है काम?
'कवच' स्वदेशी रूप से विकसित ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है। रेलवे ने इसे रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन (RDSO) की मदद से बनाया है।
रेलवे ने इस तकनीक पर 2012 में काम शुरू किया था। पहले इसका नाम ट्रेन कोलाइजन अवॉइडेंस सिस्टम (TCAS) था। हालांकि, बाद में इसे 'कवच' नाम दिया गया।
कवच सिस्टम का पहला ट्रॉयल 2016 में शुरू हुआ था और इसे धीरे-धीरे देशभर के हर एक रूट पर इंस्टॉल किया जा रहा है।
कवच सिस्टम ट्रेनों को आपस में टकराने से रोकने का काम करता है। इस तकनीक की मदद से सिग्नल जंप करते ही कुछ दूरी पर ट्रेन में ऑटोमैटिक ब्रेक लग जाते हैं।
कवच टेक्नोलॉजी फिलहाल देश के कुछ रेलवे रूट पर ही मौजूद है। 31 दिसंबर 2022 तक, कवच के तहत भारतीय रेलवे नेटवर्क के 1455 किलोमीटर रूट को कवर किया गया था।
फिलहाल दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा रूट पर ‘कवच’ को लेकर काम चल रहा है। हर साल 4000 से 5000 किलोमीटर में इस तकनीक को लागू करने का लक्ष्य रखा गया है।
मार्च, 2022 में कवच की सफल टेस्टिंग की गई थी। तब रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव एक ही ट्रैक पर दौड़ रही दो ट्रेनों में से एक में सवार थे। 380 मीटर पर ट्रेन अपने आप रुक गई थी।
‘कवच’ सिस्टम में हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो कम्युनिकेशन का इस्तेमाल होता है। इस दौरान डिवाइस को ट्रेन, रेलवे ट्रैक, सिग्नल और हर स्टेशन पर एक KM की दूरी पर इंस्टॉल किया जाता है।
जैसे ही कोई लोको पायलट सिग्नल को तोड़ता है, तो कवच एक्टिवेट हो जाता है। इसके बाद यह सिस्टम लोको पायलट को अलर्ट करता है और ट्रेन के ब्रेक्स को कंट्रोल कर गाड़ी रोक देता है।
कवच सिस्टम लगातार ट्रेन की मूमेंट को ट्रैक करता है और आगे भी सिग्नल शेयर करता है। कवच सिस्टम एक बार एक्टिव हो जाता है तो 5 किलोमीटर की सीमा के अंदर ट्रेनें रुक जाती हैं।