पूर्व पीएम नेहरू ने कहा कि कई मायनों में यह बहस दिलचस्प थी और मुझे लगता है कि लाभदायक भी होगा। व्यक्तिगत रूप से मैंने इस प्रस्ताव और इस बहस का स्वागत किया है।
1962 में चीन से युद्ध के तुरंत बाद पूर्व पीएम नेहरू की सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया है। लगातार 16 साल सत्ता संभालने के बाद नेहरू के सामने यह पहली चुनौती थी।
पहले अविश्वास प्रस्ताव पर 4 दिनों तक बहस की गई और रिकॉर्ड बताते हैं यह बहस 21 घंटे 33 मिनट तक चली। तब से लेकर अब तक भारत की लोकसभा ने 27 अविश्वास प्रस्ताव देखे हैं।
कांग्रेस के बागी आचार्य जेपी कृपलानी ने यह नो कांफिडेंस मोशन पेश किया। तब जवाहर लाल नेहरू की सरकार बच गई थी लेकिन कांग्रेस को उप चुनावों में हार मिली।
आचार्य जेबी कृपलानी ने 19 अगस्त 1963 को जवाहरलाल नेहरू सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। इस पर 4 दिनों तक संसद में दिलचस्प बहस चली थी।
चीन के साथ युद्ध में भारत 1962 में हार गया। जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा झटका था। उनकी राजनीत कमजोर हो गई। इससे इंटरनेशनल लेवल पर बदनामी हुई।
भारत और चीन के बीच पंचशील समझौते का कड़ा विरोध करने वाले कृपलानी ने इसे बकवास करार दिया था। तब चीन के साथ राजनयिक संबंध तोड़ने की बात भी कही।
अपने जवाब में पूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव का लक्ष्य सरकार को हटाना और उसकी जगह लेना है। उन्होंने तीन नेताओं पर निशाना साधा।
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जवाब में कहा कि समय-समय पर इस तरह के परीक्षण होने चाहिए, यह अच्छी बात होगी। तब से 27 बार अविश्वास प्रस्ताव आ चुका है।