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चाणक्य नीति: कौन अपना-कौन पराया, इन 6 मौकों पर होती है पहचान?

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याद रखें चाणक्य की ये नीति

आचार्य चाणक्य भारत के महान विद्वानों में से एक थे। उन्होंने अपनी एक नीति में बताया है कि अपने और पराए व्यक्ति की पहचान किन 6 स्थानों पर होती है। जानें इस नीति के बारे में…

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चाणक्य नीति का श्लोक...

आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षेत्र शत्रुसंकटे
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बांधव:
अर्थ- बीमारी, दुख, अकाल, संकट, शासकीय कामों में और श्मसान में जो काम आए वही अपना है।

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बीमारी के समय

आचार्य चाणक्य के अनुसार, जो व्यक्ति बीमारी के समय आपके साथ रहे और मदद करे, उसे ही अपना सच्चा हितैषी यानी दोस्त समझना चाहिए।

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दुःख में जो काम आए

हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी दुख की स्थिति बनती है। आचार्य चाणक्य के अनसुार, जो व्यक्ति दुख के समय काम आए वही अपना होता है।

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अकाल के समय

जब कभी अकाल पड़ जाए यानी आपके पास भोजन की व्यवस्था भी न हो उस समय जो व्यक्ति आपका साथ दे, वो ही आपका सच्चा मित्र होता है।

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जब दुश्मन सामने हो

जब आपका किसी से विवाद हो जाए और उस समय जो आपके साथ डंटकर खड़ा हो और उसे ही सच्चा मित्र यानी दोस्त समझना चाहिए।

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शासकीय कामों में

जब कभी आप किसी मुक़दमे, कोर्ट केस में फँस जाएं और उस वक़्त जो लोग आपका साथ दें, वे ही आपके सच्चे हितैषी हैं।

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श्मशान में जो काम आए

जब परिवार में किसी मृत्यु हो जाए और आप खुद को अकेला महसूस करें, उस समय जो आपके काम आए, उसे ही सच्चा मित्र समझना चाहिए।

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