आचार्य चाणक्य ने अपनी एक नीति में बताया है कि कैसे स्वभाव वाली स्त्री के साथ रहना पति के लिए मृत्यु का कारण बन सकता है। जानिए क्या लिखा है आचार्य चाणक्य ने इस नीति में…
दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः
ससर्पे गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः
अर्थ- दुष्ट पत्नी, धूर्त मित्र, उत्तर देने वाला सेवक ,सांप वाले घर में रहना, ये सभी मृत्यु के कारण हैं
आचार्य चाणक्य के अनुसार, दुष्ट पत्नी से हमेशा बचकर रहना चाहिए। ऐसी स्त्री अपने हित के लिए पति का बुरा करने से भी पीछे नहीं हटती और उसकी मृत्यु का कारण भी बन सकती हैं।
धूर्त मित्र यानी धोखा देने दोस्त से भी बचकर रहें। ऐसे मित्र किसी के सगे नहीं होते, अपने थोड़े से फायदे के लिए ये किसी का अहित कर सकते हैं। इनके साथ रहना मृत्यु के समान है।
आचार्य चाणक्य के अनुसार, जो सेवक अपने मालिक की बात न मानें और पलटकर जवाब देने लगे उसे तुरंत निकाल देना चाहिए। ऐसे नौकर कभी भी मालिक की मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
जिस घर में सांप रहता है, ऐसे घर में भूलकर भी नहीं रहना चाहिए। जाने-अनजाने में सांप पर पैर रखने से सांप पलटकर हमला भी कर सकता है, जिससे आपकी जान भी जा सकती है।