आचार्य चाणक्य की बताई हुई नीतियां यानी लाइफ मैनेजमेंट आज के समय में भी बहुत काम की है। उन्होंने एक नीति में बताया गया है कि कैसे राजा, ब्राह्मण, वेश्या और स्त्री नष्ट हो जाती हैं…
असंतुष्टा द्विजा नष्टा: संतुष्टाश्च महीभृत:
सलज्जा गणिका नष्टा निर्लल्लाश्च कुलांगना
अर्थ-संतोषरहित ब्राह्मण, संतुष्टी राजा, शर्म करने वाली वैश्या और लज्जाहीन स्त्री नष्ट हो जाती हैं
आचार्य चाणक्य के अनुसार, ब्राह्मणों को संतोषी होना चाहिए यानी जो समय पर मिल जाए उसी में गुजारा कर लेना चाहिए जो ब्राह्मण ऐसा नहीं करते वे गलत काम करके नष्ट हो जाते हैं।
पहले के समय में राजा हमेशा अपने खजाने को बढ़ाने के लिए प्रयास करता रहता है और उसी से उसका राज्य सुरक्षित रहता था। जो राजा ऐसा नहीं करते थे, वे बहुत जल्दी नष्ट हो जाते थे।
वैश्या को अपने काम में कभी शर्म नहीं करनी चाहिए। जो वैश्याएं ऐसा करती हैं वे लंबे समय तक ये काम नहीं कर पाती और जल्दी ही नष्ट हो जाती हैं यानी इस काम के योग्य नहीं रहतीं।
जिस स्त्री को अपनी मर्यादा का ध्यान नहीं रहता वो किसी पर भी विश्वास करके मार्ग से भटक जाती है यानी नष्ट हो जाती है। स्त्री की ऐसा व्यवहार परिवार के सम्मान का नाश कर देता है।