Spiritual
आचार्य चाणक्य भारत के महान विद्वान थे। उन्होंने ही जनपदों में बंटे भारत देश एक सूत्र में पिरोया और चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनकी नीतियां वर्तमान में भी हमारे लिए उपयोगी हैं।
राजा राष्ट्रकृतं पापं राज्ञ: पापं पुरोहित:
भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्यपापं गुरुस्तथा
अर्थ- राष्ट्र का पाप राजा, राजा का पाप मंत्री, पत्नी का पाप पति व शिष्य का पाप गुरु भोगता है।
आचार्य चाणक्य के अनुसार, यदि देश की जनता कुछ गलत करती है तो उसका फल उस देश के राजा को भोगना पड़ता है क्योंकि कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राजा के हाथ में होती है।
राजा कोई गलत निर्णय ले तो मंत्री को उसे सही सलाह देनी चाहिए। अगर मंत्री ऐसा नहीं करते तो इसके लिए वही जिम्मेदार होता है। इसलिए उसे ही राजा की गलतियों का फल मिलता है।
पत्नी पर पति का अधिकार होता है वो क्या कर रही है, इसके बारे में पति को पूरी जानकारी होती है। लेकिन इसके बाद भी पत्नी कोई गलती करे तो पति को ही इसका फल भुगतना होता है।
गुरु का कर्तव्य होता है कि वह शिष्य को गलत रास्ते पर जाने से रोकें, सही काम करने के लिए प्रेरित करें। अगर गुरु ऐसा नहीं करता शिष्य की गलतियों का फल उसे ही भोगना पड़ता है।