12 अक्टूबर, शनिवार को दशहरा पर्व मनाया जाएगा। इस दिन रावण के पुतलों का दहन करने की परंपरा है। रावण महाशक्तिशाली था और भगवान ब्रह्मा के वंश में पैदा हुआ था।
रामचरित मानस के अनुसार, रावण ने घोर तपस्या करके ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मदेव ने प्रकट होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा तो रावण ने अमरता का वरदान मांगा।
ब्रह्मदेव ने कहा कि ‘अमरता का वरदान तो किसी के लिए भी संभव नहीं है। संसार में जिसका भी जन्म हुआ, उसकी मृत्यु होना निश्चित है, इसलिए तुम कुछ और वरदान मांग लो।’
तब रावण ने ब्रह्मदेव से वरदान मांगा कि ‘हम काहू के मरहिं न मारें। बानर मनुज जाति दुइ बारें॥ यानी वानर और मनुष्यों के अलावा और किसी के हाथों मेरी मृत्यु न हो सके।’
ब्रह्मदेव ने रावण को ये वरदान दे दिया। रावण समझता था कि वानर और मनुष्य तो मेरे सामने कीड़े-मकोड़ों की तरह है, ये मुझे कभी मार ही नहीं सकते। इसलिए उसने ऐसा वरदान मांगा।
रावण की यही गलती उसके लिए सर्वनाश का कारण बनी। जिन वानर और मनुष्यों को रावण तुच्छ समझता था, उन्हीं को हाथों उसकी मृत्यु हुई और लंका का सर्वनाश भी हुआ।