19 सितंबर, मंगलवार को गणेश चतुर्थी है। गणपति बाप्पा के जयकारे लगाते समय ’मोरया’ भी बोला जाता है। ऐसा क्यों कहते हैं, इसके पीछे एक रोचक वजह है। आगे जानिए इसके बारे में…
मान्यता के अनुसार, करीब 600 साल पहले महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव में एक प्रसिद्ध गणेश भक्त हुए जिनका नाम मोरया गोसावी था। कुछ लोग इन्हें गणपति का ही अंश भी मानते हैं।
मोरया गोसावी प्रत्येक गणेश चतुर्थी पर 95 किमी चलकर मूयेश्वर गणेश मंदिर में दर्शन के लिए जाते थे। ये सिलसिला लगभग 117 साल तक यह ऐसे ही अनवरत रूप से चलता रहा।
वृद्ध हो जाने के कारण मोरया का मंदिर पहुंचना कठिन हो गया। तब श्रीगणेश ने सपने में आकर मोरया से कहा कि ‘तुम्हें मयूरेश्वर मंदिर आने की जरूरत नहीं है। मैं स्वयं तुम्हारे पास आऊंगा।’
अगले दिन मोरया स्वामी तालाब से स्नान कर बाहर निकले तो उन्हें गणेशजी की छोटी सी प्रतिमा मिली जो बिल्कुल मयूरेश्वर गणपति का स्वरूप थी। मोरया ने उसे चिंचवाड़ में उसे स्थापित कर दिया।
मोरया स्वामी की भक्ति देख सभी लोग श्रीगणेश और उनके नाम के जयकारे लगाने लगे। इस तरह गणपति बाप्पा मोरया जयकारा अस्तित्व में आया, जो आज भी प्रचलित है।