Spiritual

श्रीगणेश के नाम के साथ कैसे जुड़ गया ‘मोरया’ शब्द?

Image credits: Adobe Stock

गणेश चतुर्थी 19 सितंबर को

19 सितंबर, मंगलवार को गणेश चतुर्थी है। गणपति बाप्पा के जयकारे लगाते समय ’मोरया’ भी बोला जाता है। ऐसा क्यों कहते हैं, इसके पीछे एक रोचक वजह है। आगे जानिए इसके बारे में…

Image credits: Adobe Stock

मोरया गोसावी थे गणेश भक्त

मान्यता के अनुसार, करीब 600 साल पहले महाराष्ट्र के चिंचवाड़ गांव में एक प्रसिद्ध गणेश भक्त हुए जिनका नाम मोरया गोसावी था। कुछ लोग इन्हें गणपति का ही अंश भी मानते हैं।

Image credits: Adobe Stock

117 साल तक की मंदिर की यात्रा

मोरया गोसावी प्रत्येक गणेश चतुर्थी पर 95 किमी चलकर मूयेश्वर गणेश मंदिर में दर्शन के लिए जाते थे। ये सिलसिला लगभग 117 साल तक यह ऐसे ही अनवरत रूप से चलता रहा।

Image credits: Adobe Stock

भगवान आए सपने में

वृद्ध हो जाने के कारण मोरया का मंदिर पहुंचना कठिन हो गया। तब श्रीगणेश ने सपने में आकर मोरया से कहा कि ‘तुम्हें मयूरेश्वर मंदिर आने की जरूरत नहीं है। मैं स्वयं तुम्हारे पास आऊंगा।’

Image credits: Adobe Stock

मिली भगवान की प्रतिमा

अगले दिन मोरया स्वामी तालाब से स्नान कर बाहर निकले तो उन्हें गणेशजी की छोटी सी प्रतिमा मिली जो बिल्कुल मयूरेश्वर गणपति का स्वरूप थी। मोरया ने उसे चिंचवाड़ में उसे स्थापित कर दिया।

Image credits: Adobe Stock

इसलिए कहते हैं गणपति बाप्पा मोरया

मोरया स्वामी की भक्ति देख सभी लोग श्रीगणेश और उनके नाम के जयकारे लगाने लगे। इस तरह गणपति बाप्पा मोरया जयकारा अस्तित्व में आया, जो आज भी प्रचलित है।

Image credits: Adobe Stock