महाभारत आदि कई धर्म ग्रंथों में 33 कोटि देवी-देवताओं के बारे में बताया गया है। संस्कृत के विद्ववानों के अनुसार कोटि शब्द के दो अर्थ हैं, पहला करोड़ा और दूसरा प्रकार।
देवी-देवताओं के संबंध में कोटि शब्द का दूसरा अर्थ यानी ‘प्रकार’ ही काम में लिया गया है। यानी 33 करोड़ देवताओं की धारण गलत है। एक ही शब्द के 2 अर्थ होने से ये भ्रम पैदा हुआ है।
महाभारत में 33 कोटि यानी प्रकार के देवताओं का वर्णन है। ये हैं 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विनी कुमार। इन सभी को जोड़कर 33 कोटि देवताओं की कल्पना पूरी होती है।
12 आदित्य के नाम इस प्रकार हैं- धाता, मित, अर्यमा, शक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा और विष्णु। देवमाता अदिति की संतान होने के कारण इन्हें आदित्य कहा गया है।
वसु भी एक प्रकार के देवता हैं। भीष्म पितामाह भी अपने पूर्व जन्म में एक वसु थे। अष्ट वसुओं के नाम इस प्रकार हैं- धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभाष।
जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि रुद्र भगवान शिव के संबंधित हैं। इनके नाम इस प्रकार हैं- हर, बहुरूप, त्र्यम्बक, अपराजिता, वृषाकपि, शम्भू, कपर्दी, रेवत, म्रग्व्यध, शर्व, कपाली।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, अश्विन कुमार सूर्यदेव की जुड़वा संतान हैं और ये देवताओं के वैद्य भी हैं। कई पौराणिक कथाओं में इनका वर्णन मिलता है। इनके नाम इस प्रकार हैं- नासत्य और द्स्त्र।