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पूजा-पाठ में ‘धोती’ पहनना क्यों आवश्यक है?

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शंकराचार्य देते हैं जवाब

ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद महाराज के पास रोज हजारों लोग चिट्ठी के माध्यम से अपने सवाल भेजते हैं। शंकराचार्य उन सवालों का शास्त्रोक्त रूप से जवाब भी देते हैं।

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पूजा-पाठ में धोती जरूरी क्यों?

एक भक्त ने शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज से खत के जरिए पूछा कि ‘पूजा-पाठ में धोती पहनना ही क्यों आवश्यक है।’ जानें क्या जवाब दिया शंकराचार्य महाराज ने…

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हर काम के लिए अलग वेश-भूषा

शंकराचार्य जी ने कहा कि ‘हिंदू धर्म में हर कार्य के लिए अलग-अलग वेश-भूषा है। पहलवान जब कुश्ती लड़ने जाता है तो कुरता-पायजामा पहनकर नहीं बल्कि लंगोट बांधकर जाता है।’

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पूजा की वेश-भूषा भी तय

शंकराचार्य जी ने कहा कि ‘परिस्थिति और वातावरण का निर्धारण करते हुए हिंदू धर्म में वेश-भूषा का चुनाव किया जाता है। उसी तरह पूजा-पाठ के लिए भी एक अलग वेश-भूषा तय है।’

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पूजा में 2 वस्त्र जरूरी

शंकराचार्य जी ने कहा कि ‘पूजा में 2 वस्त्र अनिवार्य है- एक कमर में और दूसरा कंधे पर। कमर के वस्त्र के 2 छोर होते हैं। बायां छोर पीछे की ओर खोसते हैं, इसे कास लगाना कहते हैं।’

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इसलिए धोती पहनना जरूरी

शंकराचार्य जी ने कहा कि ‘जो व्यक्ति बिना कास लगाए पूजा करता है उसकी पूजा का फल आसुरी शक्तियां ले लेती हैं। इसलिए हिंदू धर्म में पूजा में धोती पहनना आवश्यक माना गया है।’

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