इस बार लोहड़ी 14 जनवरी, रविवार को है। इस मौके पर देश के एक हिस्से में खूनी लोहड़ी भी मनाई जाती है। इसका ये नाम क्यों पड़ा? आगे जानिए खूनी लोहड़ी से जुड़ी खास बातें…
खूनी लोहड़ी हिमाचल प्रदेश के चंबा में मनाई जाती है। यहां खूनी लोहड़ी की परंपरा काफी पुरानी है। इस मौके पर खूनी संघर्ष होना आम बात है, इसलिए इसे खूनी लोहड़ी कहते हैं।
चंबा में 15 विशेष स्थान है, जिसे मढ़ी कहा जाता है। इनमें से 13 मढ़ियों को महिला और 2 को पुरुष माना जाता है। पुरुष मढ़ी में एक को राजा और दूसरे को वजीर यानी मंत्री कहा जाता है।
लोहड़ी की रात पुरुष मढ़ी से मशाल लेकर कुछ लोग अन्य मढ़ियों पर प्रतीक स्वरूप कब्जा करने निकलते हैं। इसी कब्जे को लेकर संघर्ष की स्थिति बनती है, जिसमें खून-खराबा भी होता है।
कहते हैं कि रियासत काल के दौरान लोहड़ी के संघर्ष के दौरान यदि किसी एक व्यक्ति की जान भी चली जाती थी तो एक खून माफ करने की परंपरा थी। हालांकि अब ऐसा नहीं है।
आज भी युवा खूनी लोहड़ी की इस परंपरा को जीवित किए हुए हैं। रियासत काल के दौरान लोहड़ी के संघर्ष से पहले पशु बलि देने की परंपरा थी, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया गया।