ग्रंथों के अनुसार यमराज हर यमलोक के राजा हैं और वही मनुष्यों को उनके अच्छे-बुरे कर्मों का फल प्रदान करते हैं। महाभारत में यमराज से जुड़ी एक कथा है। आगे जानिए ये रोचक कथा…
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महाभारत में है माण्डव्य ऋषि की कथा
महाभारत के अनुसार, माण्डव्य नाम के महान तपस्वी ऋषि थे। एक बार जब वे तपस्या कर रहे थे, तो कुछ चोर उनके आश्रम में जाकर छिप गए। सैनिक उन्हें ढूंढते हुए वहां आ पहुंचें।
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जब राजा ने दिया ऋषि को दण्ड
सैनिकों ने जब चोरों को पकड़ा तो उन्हें लगा कि ये ऋषि भी इनके साथ शामिल है। वे ऋषि माण्डव्य को लेकर राजा के पास गए। राजा ने बिना सोचे समझें ऋषि माण्डव्य दंड दे दिया।
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ऋषि माण्डव्य गए यमलोक
तब ऋषि माण्डव्य सीधे यमलोक पहुंचे और उन्होंने यमराज से पूछा कि ‘मैंने अपने जीवन में ऐसा कौन-सा अपराध किया है, जिसके फलस्वरूप में राजा ने मुझे दंडित किया।’
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यमराज ने बताया ऋषि को उनका अपराध
तब यमराज ने बताया कि ‘आप बालपन में छोटे कीड़ों की पूंछ में सींक घुसा दिया करते थे, एक छोटे से अपराध का भी बड़ा दंड मिलता है, उसी के कारण आपको ये दंड भोगना पड़ा।’
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यमराज पर क्रोधित हुए ऋषि
ऋषि माण्डव्य ने कहा कि ’12 वर्ष की उम्र के बच्चों को अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं होता, उनके कर्म अपराध नहीं होते। तुमने बालपन में किए छोटे से अपराध का मुझे बड़ा दण्ड दिया है।’
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ऋषि ने दिया यमराज को श्राप
ऋषि माण्डव्य ने यमराज को श्राप दिया कि ‘इस गलती के कारण तुम्हें धरती पर दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना होगा।’ इस श्राप के कारण यमराज ने विदुर के रूप में दासी के गर्भ जन्म लिया।