कार्तिक पूर्णिमा पर उत्तर प्रदेश के काशी में देव दिवाली मनाई जाती है। इस बार ये पर्व 27 नवंबर, सोमवार को है। इस मौके पर गंगा नदी के किनारे लाखों दीपक जलाए जाते हैं।
पूरे भारत में सिर्फ काशी में ही देव दिवाली मनाई जाती है। बहुत कम लोग जानते हैं देव दिवाली सिर्फ काशी में ही क्यों मनाते हैं? इस परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।
शिवपुराण के अनुसार, दैत्य तारकासुर के तीन पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। इन तीनों के पास 3 ऐसे नगर थे जो आकाश में लगातार घूमते रहते थे।
ब्रह्मदेव से इन्हें वरदान मिला था कि जब एक ही बाण से ये तीनों नगर नष्ट हों, तभी हमारी मृत्यु संभव हो सके। ब्रह्माजी से वरदान पाकर इन तीनों असुरों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया।
देवताओं ने ये बात शिवजी को बताई। शिवजी एक दिव्य रथ पर सवार होकर उनसे युद्ध करने पहुंचें। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, शिवजी ने एक बाण चलाकर उनका नाश कर दिया।
तीनों नगर एक साथ नष्ट होने से तारकासुर के तीनों पुत्र भी मारे गए। इस खुशी में सभी देवता भगवान शिव के साथ काशी आए और यहां उत्सव मनाया। उस दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा थी।
तभी से कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल काशी में देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है। समय के साथ इनकी भव्यता और भी बढ़ती जा रही है। देव दिवाली का अर्थ है देवताओं की दिवाली।