प्रयागराज कुंभ में नागा साधुओं के बाद अगर किसी अन्य साधुओं की सबसे ज्यादा बातें की जा रही है तो वे हैं अघोरी। अघोरपंथ दुनिया से बहुत अलग होता है और इसे मानने वाले अघोरी कहलाते हैं।
अघोर की अर्थ है जो बिल्कुल भी घोर नहीं यानी सबसे सामान्य। अघोरी साधु किसी भी जीव-जंतु, मांस यहां तक की मल-मूत्र से भी घृणा नहीं करते। भीड़ से दूर सुनसान स्थान पर साधना करते हैं।
बहुत से लोगों के मन में ये जानने की उत्सुकता रहती है कि जब अघोरी साधु मरते हैं तो उनका अंतिम संस्कार कैसे होता है। अघोरियों के अंतिम संस्कार की विधि बहुत ही डरावनी होती है।
ऐसा कहते हैं कि अघोरी के शव को न तो जलाया जाता है और न ही दफनाया जाता है। इनका अंतिम संस्कार आम लोगों से बहुत ही अलग और विचित्र होता है जिसे कोई देख भी नहीं सकता।
अघोरी की मौत होने पर साथी उस शव को किसी सुनसान स्थान पर उल्टा लटका देते हैं यानी सिर नीचे और टांगे ऊपर। अघोरी के शव को इस स्थिति में 40 दिन तक रखा जाता है।
इतने दिनों में अघोरी का शव सड़ चुका होता है और उसमें कीड़े लग जाते हैं। ये कीड़े शव का अधिकांश हिस्सा खा लेते हैं। 40 दिन बाद शव के बाकी बचे हिस्से को नदी में बहा देते हैं।
अघोरी अपने साथियों का अंतिम संस्कार बहुत ही गुप्त तरीके से करते हैं। मानते हैं कि इस तरह से अंतिम संस्कार करने से मृतक की आत्मा को मोक्ष मिलता है और वह परमात्मा में लीन हो जाता है।