आचार्य चाणक्य ने अपनी एक नीति में सुंदर पत्नी को जहर के समान बताया है। चाणक्य ने ऐसा क्यों कहा? इसके पीछे एक गहरा रहस्य छिपा है। जानें चाणक्य की इस नीति के बारे में…
अनभ्यासे विषं विद्या अजीर्णे भोजनं विषम्
विषं सभा दरिद्रस्य, वृद्धस्य तरुणी विषम्
अर्थ- बिना अभ्यास ज्ञान, पेट खराब हो तो भोजन, गरीब के लिए सभा, बूढ़े पति के लिए जवान स्त्री जहर है।
बूढ़े व्यक्ति के लिए जवान पत्नी किसी भी तरह से ठीक नहीं। ऐसे लोगों का वैवाहिक जीवन ठीक नहीं रहता और विवाद की स्थिति बनती है। इसलिए बूढ़े पति के लिए जवान पत्नी जहर के समान है।
अगर आपके पास कोई ज्ञान है लेकिन आप उसका अभ्यास नहीं करते तो समय आने पर वो ज्ञान आपके किसी काम का नहीं होता। इसलिए चाणक्य ने इसे भी विष के समान बोला है।
आचार्य चाणक्य के अनुसार यदि आपका पेट खराब है और स्वाद के लिए आप भी भोजन कर रहे हैं तो इससे आपकी सेहत और खराब हो सकती है। इसलिए पेट खराब हो तो कुछ भी खाए नहीं।
किसी गरीब व्यक्ति को अगर किसी शादी-समारोह में जाना हो तो उसके लिए ये स्थिति काफी विकट होती है क्योंकि पैसा न होने की स्थिति में उसके लिए वहां जाना परेशानी से भरा हो सकता है।