महाभारत के अनुसार, दुर्योधन से जुएं में हारने के बाद पांडवों को 12 साल के वनवास और 1 साल के अज्ञात वास पर जाना पड़ा। जानें अज्ञातवास के दौरान पांडव कहां रहे और उनके नाम क्या थे…
पांडवों ने अपना 1 साल का अज्ञात वास विराट नगर में बिताया। यहां द्रौपदी सहित सभी पांडव अपना रूप बदलकर सेवक के रूप में रहे। इस दौरान किसी को उनके बारे में बता भी नहीं चला।
विराटनगर में धर्मराज युधिष्ठिर कंक नाम के ब्राह्मण के रूप में राजा विराट के साथ रहे। राजा विराट ने उन्हें अपना मित्र बना लिया और राजकोष व सेना आदि की जिम्मेदारी भी दी।
युधिष्ठिर के बाद भीम राजा विराट की सभा में आए। उन्होंने अपना परिचय रसोइए के रूप में दिया और अपना नाम बल्लव बताया। राजा ने भीम को भोजनशाला का प्रधान अधिकारी बना दिया।
राजा विराट की सभा में अर्जुन बृहन्नला (नपुंसक) के रूप में गए स्वयं को नृत्य-संगीत में निपुण बताया। राजा विराट ने अपनी पुत्री उत्तरा को शिक्षा देने के लिए अर्जुन को नियुक्त कर दिया।
राजा विराट के पास सहदेव ग्वाले का वेष बनाकर गए और अपना नाम तंतिपाल बताया। सहदेव की योग्यता देखकर राजा विराट ने उन्हें पशुओं की देखभाल करने वालों का प्रमुख बना दिया।
नकुल अश्वपाल का वेष धारण कर राजा विराट के पास गए और अपना नाम ग्रंथिक बताया। अश्वों का ज्ञान देखकर उन्हें घोड़ों और वाहनों को देखभाल करने वालों का प्रमुख बना दिया।
सबसे अंत में द्रौपदी दासी वेष में राजा विराट की रानी के पास गई और अपना नाम सैरंध्री बताया। द्रौपदी की विशेषता देखकर रानी सुदेष्ण ने उसे अपनी सेवा में रख लिया।