दुर्योधन ही कौरवों के विनाश का कारण था। युद्ध से पहले दुर्योधन आत्महत्या करना चाहता था, लेकिन फिर उसने अपना विचार त्याग दिया। जानें कब और कैसे हुई ये घटना…
जब पांडव वनवास के दौरान द्वैतवन में रह रहे थे तो उन्हें अपना वैभव दिखाने के लिए दुर्योधन भी सेना सहित वहां पहुंच गया और सरोवर के निकट एक क्रीडा भवन तैयार करवाया।
वो क्षेत्र गंधर्वों का था। दुर्योधन ने गंधर्वों की कन्या का अपमान कर दिया, जिससे वे क्रोधित हो गए और उन्होंने हस्तिनापुर के सैनिकों का हराकर दुर्योधन, दु:शासन आदि को बंदी बना लिया।
बाद में पांडवों ने जाकर दुर्योधन को गंधर्वों से मुक्त करवाया। दुखी होकर दुर्योधन ने आत्महत्या करने का विचार किया। दुर्योधन ने अन्न-जल त्याग दिया और वन में ही रहने लगा।
जब ये बात दैत्यों को पता चली तो वे दुर्योधन से बोले कि ‘तुम्हारी सहायता के लिए अनेक दानव पृथ्वी पर आ चुके हैं। पांडवों से युद्ध में वे तुम्हारा साथ देंगे और जीत दिलाएंगे।’
राक्षसों के ऐसा कहने पर दुर्योधन ने प्रतिज्ञा की कि अज्ञातवास समाप्त होते ही वह पांडवों का विनाश कर देगा। इस प्रकार दैत्यों के कहने पर दुर्योधन ने आत्महत्या का विचार छोड़ दिया।