इस बार ओणम 29 अगस्त, मंगलवार को मनाया जाएगा। ये दक्षिण भारत का प्रमुख त्योहार। ये पर्व 10 दिनों तक मनाया जाता है। आगे जानिए इन 10 दिनों में कब क्या किया जाता है…
ओणम के पहले दिन को अथम कहते हैं। इस दिन से युवतियां लगातार 10 दिनों तक अपने घरों के बाहर फूलों की आकर्षक रांगोली बनाना शुरू करती हैं, जिसे पूकलम कहते हैं।
ओणम के दूसरे दिन चिथिरा पर्व मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग दिन की शुरूआत पूजा-पाठ से करते हैं। इस दिन बनाई जाने वाली फूलों की रांगोली अपेक्षाकृत थोड़ी बड़ी होती है।
ओणम के तीसरे दिन को चोढ़ी कहा जाता है। इस दिन कुछ विशेष कार्यक्रम तो नहीं होते लेकिन इस दिन खरीदी जरूर की जाती है। इस दिन को खरीदी के लिए विशेष शुभ माना जाता है।
ओणम के चौथे दिन घर को सजाया जाता है। इसे विसकम कहते हैं। महिलाएं इस दिन खास तरह के अचार-पापड़ बनाती हैं और लड़कियां फूलों की और भी बड़ी रांगोली घर के बाहर बनाती हैं।
ओणम के पाचवें दिन को अनिज़म कहते हैं। इस दिन बोट रेस का आयोजन किया जाता है। इसे वल्लमकली कहते हैं। जो भी लोग ये रेस जीतते हैं, उन्हें पुरस्कृत किया जाता है।
ओणम के छठे दिन सभी लोग आपस में मिलते हैं और एक-दूसरे को उपहार देते हैं। इस दिन कई कार्यक्रम भी होते हैं। लोग मंदिरों की यात्रा भी करते हैं। इसे थ्रीकेटा के नाम से जाना जाता है।
ओणम के सातवं दिन को मूलम कहते हैं। इस दिन मंदिरों में विशेष भोज का आयोजन होता है। भगवान को ओणसाद्य (विशेष प्रकार की खीर) का भोग भी लगाया जाता है।
ओणम के आठवें दिन को पूरदम कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के अवतार वामन और राजा महाबलि की मिट्टी की मूर्तियां बनाते हैं। इस दिन रांगोली का आकार और बड़ा होता है।
ओणम के नौवें दिन को उत्तरदम कहते हैं। इस दिन भक्त राजा महाबली के आगमन की तैयारी करते हैं। इनके स्वागत में फूलों का गलीचा सजाया जाता है व घर की साज-सज्जा की जाती है।
ओणम के दसवें दिन को थिरुवोनम कहते हैं। इस दिन लोग पारंपरिक रूप से राजा महाबली का स्वागत करते हैं और विशेष प्रकार की साद्या थाली बनाकर दावत का आनंद लेते हैं।