श्राद्ध पक्ष 18 सितंबर से 2 अक्टूबर तक रहेगा। इन दिनों में लोग अपने मृत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान करते हैं। हिंदू धर्म में श्राद्ध करना जरूरी माना गया है।
पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। यदि कईं पुत्र हों तो सबसे बड़े पुत्र को ये काम करना चाहिए। यदि पुत्र न हो तो श्राद्ध कौन करे, इसके बारे में धर्म ग्रंथों में बताया गया है।
श्राद्ध प्रकाश ग्रंथ के अनुसार, पुत्र न हो तो छोटा भाई श्राद्ध कर सकता है। वो भी न हो तो भाई के पुत्र श्राद्ध कर सकते हैं। इनके न होने पर परिवार का कोई भी पुरूष श्राद्ध कर सकता है।
परिवार में यदि कोई भी पुरुष सदस्य न हो तो सपिंड यानी अपने ही गौत्र का कोई दूसरा व्यक्ति भी श्राद्ध कर सकता है क्योंकि उसके पूर्वज कभी न कभी इस परिवार के सदस्य रहे होंगे।
यदि सगोत्र में भी कोई पुरुष न हो तो पत्नी भी अपने पति की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर सकती है। यदि पत्नी भी न हो तो पुत्री का पति भी श्राद्ध करने का अधिकारी है।
पुत्री का पति भी न हो तो उसका पुत्र भी अपने नाना पक्ष का श्राद्ध कर सकता है। ऐसा धर्म ग्रंथों में लिखा है। इन सबके न होने पर दत्तक पुत्र यानी गोद लिया बेटा भी श्राद्ध कर सकता है।