दशहरा पर्व असत्य ( रवाण) पर सत्य (राम ) की विजय का प्रतीक है। रावण रुपी पुतला का दहन ये बताता है कि अंहकार का हमेशा नाश होता है।
त्रेता युग में जन्मे राम भगवान के रूप में पूजे जाते हैं, वहीं कुछ वजहों से रावण की भी प्रतिष्ठा है। दोनों के बीच घोर असामनताएं हैं, लेकिन कुछ समानताएं भी हैं।
राम ने अपनी पत्नी सीता के हरण के लिए लंका पर चढ़ाई की, वहीं रावण ने सीता को मुक्त नहीं करने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया।
रावण ने धर्म की शिक्षा देने पर विभीषण का त्याग किया वहीं राम ने शत्रुध्न को राजा बनाकर खुद से दूर किया, लक्ष्मण आदेश की अवहेलना करने पर मुत्युदंड दिया।
राम- रावण की दोनों की ही कुंडली में मंगल मकर राशि में, शनि तुला राशि में और गुरु लग्न यानी कुंडली के प्रथम घर में विराजमान हैं।
राम और रावण दोनों की ही कुंडली में पंच महापुरुष योग दिखाई देता है। ज्योतिषशास्त्र में इसे बेहद शुभ माना जाता है।
राम-रावण दोनों ही भगवान शिव के अनन्य भक्त हैं। राघव ने युद्ध से पहले शिवलिंग की स्थापना की थी. जो आज रामेश्वरम के नाम से फेमस है।
वहीं बाबा बैद्यनाथ धाम में रावण की शिव भक्ति का प्रमाण मिलता है।
रावण के अंतिम समय राम ने लक्ष्मण को उससे शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा था। परम ज्ञानी होने के बावजूद दशानन के अहंकार ने उसका समूल नाश कर दिया।
रावण ने जगत को बताया कि काम को टालना नहीं चाहिए, वो चाहता तो स्वर्ग तक सीढ़िया बना सकता था। सोने में सुगंध भी पैदा कर सकता था, लेकिन वो हमेशा इन कामों को टालाता गया।