करोड़ों लोगों का महापर्व छठी मैया का त्योहार 05 नवंबर से शुरू हो गया है। संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखे जाने वाला यह व्रत 4 दिन तक चलता है।
यह व्रत नहाय-खाय से शुरू होता है। पहले दिन पवित्र नदी में स्नान करके मिट्टी के बर्तन में कद्दू-भात बनाया जाता है। इस दिन महिलाएं नए वस्त्र पहनती हैं।
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। शाम को खीर बनाई जाती है। यह खीर गन्ने के रस से बनती है, जिसमें नमक-शक्कर इस्तेमाल नहीं होता। फिर महिलाएं 36 घंटे निर्जला व्रत रखती हैं।
छठ पूजा के तीसरे दिन सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है। शाम को विशेष पकवान "ठेकुवा" और मौसमी फल चढ़ाये जाते हैं।
छठ पूजा के चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत पूरा होता है। इसके बाद पारण होता है, जिसमें चावल, दाल, सब्जी, साग, पापड़, चटनी आदि चीजें खाई जाती हैं।
छठी मैया सूर्यदेव की बहन हैं। कहा जाता है कि सूर्य की इस तरह आराधना करने से छठ माता प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं। अर्घ्य देने से कई जन्मों के पाप नष्ट होते हैं।