जाति जनगणना लौट रही है! क्या इससे सामाजिक न्याय बदलेगा या बढ़ेगा जातिगत तनाव? जानिए 70 साल बाद आई इस ऐतिहासिक निर्णय के पीछे की रहस्यमयी कहानी।
6 दशक बाद सरकार ने अगली जनगणना में जातिगत डेटा शामिल करने का फैसला किया है। क्या यह सामाजिक सुधार की ओर एक बड़ा कदम है या सियासी चाल?
जाति जनगणना में हर व्यक्ति की जाति से जुड़ा डेटा इकट्ठा किया जाता है, जिससे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक नीतियां बेहतर बनाई जा सकें।
ब्रिटिश राज में 1881 से 1931 तक हर जनगणना में जाति दर्ज होती थी। लेकिन 1951 में भारत ने इसे बंद कर दिया… अब फिर से इतिहास लौट रहा है!
नेहरू सरकार ने 1951 में जातिगत गिनती को रोका ताकि राष्ट्रीय एकता को जातियों के विभाजन से बचाया जा सके। लेकिन क्या वाकई इससे फर्क पड़ा?
आज़ादी के बाद नेहरू सरकार ने इसे राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा मानते हुए सिर्फ SC/ST की गिनती जारी रखी, बाकी जातियों को छोड़ दिया।
1980 में मंडल आयोग ने OBC आरक्षण की सिफारिश की, लेकिन व्यापक जाति डेटा की कमी से इस वर्ग की सही पहचान मुश्किल हो गई।
SECC 2011 में जाति डेटा इकट्ठा तो हुआ, लेकिन कभी सार्वजनिक नहीं किया गया, जिससे विपक्ष और सामाजिक संगठनों में नाराज़गी बढ़ी।
जातिगत असमानताओं को समझकर शिक्षा, नौकरी और स्वास्थ्य में समान अवसर देने वाली नीतियाँ तभी बनेंगी जब सटीक आंकड़े होंगे।
आगामी जनगणना जातिगत राजनीति को नया आकार दे सकती है। लेकिन क्या इससे समाज बंटेगा या न्याय होगा? यही सबसे बड़ा सवाल है।