कोडरमा के नवलशाही में माता चंचला देवी के धाम में सिंदूर चढ़ाना वर्जित है। जानें इस शक्तिपीठ के महत्व और पूजा की विशेषताएं, जहां हर महीने सैकड़ों श्रद्धालु आते हैं।
नवरात्र का पावन पर्व चल रहा है और इस दौरान महिलाएं मां दुर्गा की पूजा के लिए पंडालों में जा रही हैं। इस अवसर पर महिलाएं माता को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा का पालन करती हैं।
पुजारी छोटेलाल पांडेय के अनुसार मां चंचला को दुर्गा का रूप माना जाता है। नवालशाही के कानीकेंद मोड़ पर इसका मुख्य द्वार है, जो जंगल के बीच करीब 8 किमी. दूर चंचालिनी धाम तक जाता है।
पहाड़ की ऊंचाई लगभग 400 फीट है, जहां मां चंचला देवी की मूर्ति स्थापित है। इस पहाड़ पर एक गुफा भी है, जिसमें मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का दर्शन होता है।
वर्ष 1956-57 में खेशमी राजवंश ने पहाड़ पर सीढ़ियों का निर्माण कराया था, लेकिन माता की इच्छा के अनुसार शिखर तक सीढ़ी नहीं बनाई जा सकी।
श्रद्धालु लोहे की पाइप की रेलिंग का सहारा लेकर चोटी तक पहुंचते हैं और वहां शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।
पर क्या आप जानते हैं कि झारखंड के कोडरमा जिले के नवलशाही में माता चंचला देवी धाम में सिंदूर चढ़ाना वर्जित है। यह शक्तिपीठ श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
पुजारी छोटेलाल पांडेय ने बताया कि चंचालिनी धाम में माता की कन्या रूप में पूजा होती है, इसलिए यहां सिंदूर चढ़ाना वर्जित है। पूजा में नारियल, चुनरी और प्रसाद चढ़ाया जाता है।
झारखंड, बिहार और बंगाल से सैकड़ों श्रद्धालु मन्नत पूरी होने के बाद यहां बकरे की बलि दी जाती है, विशेषकर नवरात्रि की अष्टमी और नवमी के दिन करीब 2000 बकरों की बलि दी जाती है।