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हर पल मौत का खतरा: लेकिन पेट का सवाल, दहला देंगी मजदूरों की तस्वीरें

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मजदूरों के सम्मान में लेबर डे

1 मई को पूरे दुनियाभर में मजदूर दिवस यानि लेबर डे मनाया जा रहा है। यह दिवस मजदूरों के सम्मान में है। लेकिन उन मजदूरों की जिंदगी के बारे में जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे।

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प्राण तक दांव पर लगा देते

हम बात कर रहे हैं उन मजदूरों की जो कोयला की खदान में काम करते हैं। जो पेट भरने की खातिर अपना प्राण तक दांव पर लगा देते हैं।

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मजदूरों का रोज होता है मौत से सामना

कोयला खदानो में काम करना यानि मौत के सामने जाना, क्योंकि खदानों में काम करने वाले मजदूरों का दिन कब आखिरी हो जाए, कब सांसे रूक जाएं यह कोई नहीं जानता है।

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मजदूरों को कदम कदम पर खतरा

कोयला खदानों में मजदूरों को कदम कदम पर खतरा होता है। वह कभी खदान की काली मिट्टी के नीचे दब सकते हैं। दूसरा कोयला खदान की जहरीली गैस से दम घुटकर भी मौत हो सकती है।

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अचानक हो जाते हैं जब धमाके

कई बार तो ऐसा होता है कि मजदूर काम कर रहे होते हैं, और अचानक से खदान में जहरीली गैस का दवाब बढ़ने पर अचानक ब्लॉस्ट हो जाता है।

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जिंदगी नर्क से कम नहीं होती

जो मजदूर बच भी जाते हैं तो उनकी बाकी की जिंदगी नर्क से कम नहीं होती है। क्योंकि कोयले खदान में काम करने की वजह से कई मजदूरों के फेफड़े खराब हो चुके होते हैं।

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टीबी, कैंसर और आंखों पर खतरा

खदानों से रिसने वाले हानिकारक गैसों से जानलेवा बीमारी का शिकार भी हो जाते हैं। कभी भी उनको टीबी, कैंसर और आंखों की रोशनी पर खतरा हो सकता है।

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मजूदरों की हिम्मत को सलाम

लेकिन मजूदरों की हिम्मत को सलाम करना होगा। खदानों में आसपास आग और धुएं का गुब्बार चलता रहता है, फिर भी वो मुस्कुराते हुए काम करते रहते हैं।

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मजदूरों हालत में कोई सुधार नहीं

इतना खतरा होने के बाद भी मजदूरों हालत में कोई सुधार नहीं आया है। अधिकतर मजदूर ठेके पर काम करते हैं। यानि उनको स्थायी वेतन नहीं मिलता है। खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद यह हाल है।

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