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शिव-पार्वती की ऐसी आराधना देश में और कहीं नहीं..सवा महीने तक ये सब बैन

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आदिवासी क्षेत्रों में होता है अनोखा उत्सव

राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में गवरी नृत्य एक अनोखी परंपरा है, जिसमें भील समाज के लोग सवा महीने तक शिव-पार्वती की कथा पर आधारित नृत्य करते हैं। जानें इससे जुड़ी विशेषताएं।

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ये लोग होते हैं इस उत्सव में शामिल

राजस्थान में हर 100 किमी की दूरी पर भाषा और परंपराओं में बदलाव आता है। आज भी राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र में आदिवासी समाज के लोग कई अनोखी परंपराओं का निर्वहन करते हैं।

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भील समाज के लोग मानते हैं अपनी परंपरा

इन्हीं में से गवरी नृत्य है। कहने को तो ये डांस है लेकिन इस इलाके में भील समाज के लोग इसे परंपरा की तरह निभाते हैं। बांसवाड़ा, डूंगरपुर आदि जिलों में कबीले ये उत्सव मनाया जाता है।

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शिव और पार्वती की कथा पर आधारित होता है नृत्य

भगवान शिव और पार्वती की कथा पर आधारित यह नृत्य करीब सवा महीने तक चलता है। बकायदा इसके लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और मांस मदिरा तो दूर हरी सब्जियां भी छोड़नी पड़ती है।

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इसमें शामिल होने वालों का घर में प्रवेश करना होता है प्रतिबंधित

इसमें हिस्सा लेने वाले आदमी को डेढ़ महीने तक घर की दहलीज में भी प्रवेश करने का अधिकार नहीं है। अंत में गलावन और वालावन नाम की परंपरा निभाई जाती है।

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अंतिम दिन का महोत्सव होता है विशेष आकर्षक

सबसे अनोखी परंपरा का निर्वहन अंतिम दिन ही होता है। उस दिन मिट्टी के कपड़े या हाथी की सवारी निकाली जाती है, जो ग्रामीणों को खासतौर से उत्साहित करता है,बाहर से भी लोग देखने आते हैं।

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