राम मंदिर को इस तकनीक से बनाया गया है कि ये भूकंप आने पर भी टस से मस नहीं होगा। इसकी नींव में ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है कि ये 1000 साल तक खड़ा रहेगा।
राम मंदिर की उम्र को 1000 साल मानकर इसे बनाया जा रहा है। इसमें सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टिट्यूशन रुड़की और जियोफिजिकल स्टडी रिसर्च लैब हैदराबाद के इंजीनियर्स ने काफी मदद की है।
मंदिर में लगने वाले ग्रेनाइट पत्थरों को अच्छी तरह फिट करने के लिए इनमें होल्स बनाए गए। इसका सुझाव CBRI रुड़की और जियोफिजिकल स्टडी रिसर्च लैब हैदराबाद के इंजीनियरों ने दिया।
राम मंदिर के निर्माण में पत्थरों को जोड़ने के लिए सीमेंट का इस्तेमाल बिल्कुल भी नहीं किया गया। सभी पत्थरों पर नंबरिंग की गई, इसके मुताबिक ही पत्थरों को होल्स में फिट किया गया है।
पत्थरों के इन होल्स को मजबूती देने के लिए इन्हें तांबे की पत्तियों से जोड़ा गया है। हर एक पत्थर को दूसरे पत्थर पर अच्छी तरह से फिट किया गया है।
राम मंदिर निर्माण समिति के चेयरमैन नृपेन्द्र मिश्रा के मुताबिक, भूकंप में भी मंदिर टस से मस न हो, इसके लिए हमने नेपाल से लेकर 500 किलोमीटर दूर तक भूकंप की पूरी स्टडी की।
रिक्टर स्केल पर मिनिमम और मैक्सिमम तीव्रता को बारीकी से जांचा गया। मंदिर को इस तरह तैयार किया गया है कि ये रिक्टर स्केल पर भूकंप की दोगुनी तीव्रता को भी आसानी से झेल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 9 नवंबर, 2019 को मंदिर का मार्ग प्रशस्त होने के बाद 5 फरवरी, 2020 को PM मोदी ने ट्रस्ट के गठन का ऐलान किया। ट्रस्ट का नाम 'श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' है।