सत्संग के लिए आयोजनकर्ता ने 80 हजार लोगों की अनुमति मांगी थी, लेकिन भीड़ उससे कहीं ज्यादा थी और उसके हिसाब से पर्याप्त इंतजाम नहीं थे।
अचानक भगदड़ मचने की स्थिति में इमरजेंसी रास्ते भी नहीं बनाए गए। इसके चलते इतनी भारी भीड़ एक ही रास्ते से निकली, जिसके चलते हादसा हुआ।
आयोजन स्थल पर न तो एंट्री प्वाइंट था और ना ही एग्जिट प्वाइंट। जबकि किसी भी बड़े आयोजन से पहले भीड़ को कंट्रोल करने के लिए इन्हें बनाना जरूरी है।
80 हजार लोगों की भीड़ के लिए आयोजन स्थल पर न तो मेडिकल सुविधा थी और ना ही एंबुलेंस का इंतजाम था।
इतनी गर्मी में 80 हजार से ज्यादा लोगों के लिए कूलर-पंखों का भी इंतजाम नहीं किया था। इसके चलते दम घुटने से भी लोगों की मौत हुई।
भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आयोजन स्थल पर वॉलेंटियर्स की भी भारी कमी थी। इसके अलावा प्रशासन की ओर से भी पर्याप्त फोर्स नहीं थी।
सत्संग में आए लोगों के लिए खाने-पीने का भी उचित इंतजाम नहीं था, जिसकी वजह से लोग यहां-वहां भटकते रहे।
जिस रास्ते से नारायण साकार हरि का काफिला गुजरा, उस पर किसी भी तरह की बैरिकेडिंग नहीं की गई थी। इसकी वजह से लोग बाबा के चरणों की धूल पाने के लिए जद्दोजहद करने लगे।
जहां पर सत्संग का आयोजन था, उस 10 एकड़ के मैदान को समतल करना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। जमीन ऊबड़-खाबड़ होने की वजह से लोग गिरते रहे।
मैदान के चारों तरफ आने-जाने के रास्ते नहीं थे। सिर्फ एक छोटा-सा कच्चा रास्ता बनाया गया था, जो इतनी भीड़ के लिए नाकाफी था।