प्रेमानंद महाराज ने खेलने-कूदने की उम्र में ही घर छोड़कर संन्यास ले लिया था और अध्यात्म के मार्ग पर निकल पड़े।
संन्यास लेने के बाद वे पहले बनारस में ज्ञानमार्गी संन्यासी थे, लेकिन कृष्ण लीला देखने के बाद उनका मन बदल गया और वे वृंदावन आ गए।
करीब 21 साल पहले कानपुर के अनिरुद्ध पांडे को वृंदावन के राधावल्लभ मंदिर में "प्रेमानंद महाराज" नाम मिला था।
यह नाम उन्हें राधावल्लभ मंदिर के तिलकायत अधिकारी श्रीहित मोहित मराल महाराज ने दिया था।
मोहित मराल महाराज ने प्रेमानंद जी को राधारानी की भक्ति का मार्ग दिखाया और दीक्षा भी प्रदान की।
बाद में उन्हें संत श्रीहित गौरांगी शरण महाराज के पास भेजा गया, जिन्होंने उन्हें प्रेम मार्ग की शिक्षा दी।
गौरांगी शरण महाराज, जिन्हें भक्त "बड़े महाराज जी" कहते हैं, ने प्रेमानंद जी को राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षित किया।
कानपुर के अनिरुद्ध कुमार पांडे ही आज "संत प्रेमानंद महाराज" के नाम से जाने जाते हैं और हजारों भक्तों के मार्गदर्शक बने।
गुरु की शरण में जाकर ही प्रेमानंद जी महाराज प्रेममार्गी बने और आज उनके उपदेश लाखों श्रद्धालुओं के जीवन को दिशा दे रहे हैं।
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