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अहमद फ़राज़ के टॉप-10 शेर-रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ/आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

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अब के हम बिछड़े तो शायद...

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें/जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

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किस किस को बताएंगे जुदाई...

किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम/ तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

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कांच की तरह होते हैं गरीबों के दिल

कांच की तरह होते हैं गरीबों के दिल फ़राज़/कभी टूट जाते हैं तो कभी तोड़ दिए जाते हैं

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सुना है लोग उसे आंख भर के...

सुना है लोग उसे आंख भर के देखते हैं/ सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं

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दिल को तिरी चाहत पे...

दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है/और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता

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ज़िंदगी से यही गिला है...

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे/तू बहुत देर से मिला है मुझे

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आंख से दूर न हो...

आंख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा/वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा

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इस से पहले कि...

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएं/क्यूं न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएं

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हम को अच्छा नहीं लगता...

हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा/कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे

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