रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ/आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें/जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
किस किस को बताएंगे जुदाई का सबब हम/ तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
कांच की तरह होते हैं गरीबों के दिल फ़राज़/कभी टूट जाते हैं तो कभी तोड़ दिए जाते हैं
सुना है लोग उसे आंख भर के देखते हैं/ सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है/और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे/तू बहुत देर से मिला है मुझे
आंख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा/वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएं/क्यूं न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएं
हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा/कोई तुझ सा हो तो फिर नाम भी तुझ सा रक्खे