100 साल पूरे होने के बाद दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक किताबों के प्रकाशकों में से एक गीता प्रेस गोरखपुर को साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार। हालांकि, इस पर विवाद हो गया है।
श्रीमद्भागतगीता, रामचरित मानस, पुराण, उपनिषद हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, तमिल, कन्नड़, असमिया , उड़िया और उर्दू समेत 15 भाषाओं में प्रकाशित होती हैं।
गीता प्रेस में अब तक करीब 1850 तरह की 92.5 करोड़ से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। जर्मन-जापानी हाईटेक मशीनों से यहां किताबें छपती हैं।
गीता प्रेस अपनी क्वालिटी और कीमत से एक से बढ़कर एक धुरंधर प्रबंधकों को हैरान कर दिया है। इस प्रेस के सफर की कहानी बेहद दिलचस्प है।
स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त साल 1923 में राजस्थान के चुरू के रहने वाले जयदयाल गोयदंका ने गीता प्रेस की शुरुआत की थी। तब से यह हिंदू धार्मिक साहित्य का सबसे बड़ा प्रकाशक है।
29 अप्रैल, 1923 को गोरखपुर में 10 रुपए किराए की दुकान से गीता प्रेस की शुरुआत हुई थी। पहली गीता सिर्फ 1 रुपए में ही बाजार में आ गई थी।
साल 1926 में गीता प्रेस ने मासिक पत्रिका निकालने का फैसला किया। 8 अक्टूबर, 1933 को गीता प्रेस की गीता प्रवेशिका के लिए गांधी जी ने भूमिका लिखी थी।
गीता प्रेस की पत्रिका में गांधी जी ने कोई विज्ञापन न छापने की शर्त पर लेख लिखा था। गीता प्रेस ने भी उनकी बात मानी थी और एक भी विज्ञापन नहीं छापा।
गीता प्रेस से महात्मा गांधी का खासा लगाव था। कल्याण पत्रिका में उन्होंने कई बार लेख लिखे। गांधी जी के निधन के बाद उकने विचार गीता प्रेस में छपते रहे।
एक ट्रस्ट की तरह गीता प्रेस काम करता है। यह लोगों को कम से कम दाम पर धार्मिक पुस्तकें उपलब्ध करवाता है। मुनाफा कमाना इस ट्रस्ट का उद्देश्य नहीं है।