ब्रिटेन की राजधानी लंदन में 1952 में दिसंबर के शुरुआत में स्मॉग का कहर बरपा था। तब दिन अचानक से काला हो गया था और सूरज की रोशनी तक दिखनी बंद हो गई थी। हवा दम घोंटने लगी थी।
उस घटना को 'ग्रेट स्मॉग ऑफ लंदन' के नाम से जाना जाता है। उस वक्त अस्पताल पट गए थे। चार दिनों में ही 4,000 मौतें हो गई थी। इस स्मॉग से कुल 12,000 लोगों की जानें गईं थी।
लंदन में 5 दिसंबर 1952 से शुरू हुआ स्मॉग 9 दिसंबर 1952 तक रहा। स्मॉग घरों और बंद जगहों में घुस गया था। पूरा आसमान कोयले जैसा काला हो गया था। इसका सीधा असर सेहत पर हुआ।
4 दिन में ही इस स्मॉग से 4,000 लोग मारे गए। एक लाख से ज्यादा लोग बीमार पड़ गए थे। आंखें, सांस से जुड़ी बीमारियां और फेफड़े बुरी तरह प्रभावित हुए थे। महीनों तक प्रभाव देखने को मिला।
लंदन में जहरीले फॉग ने 4000 लोगों की जान ले ली थी। इसमें युवा-बुजुर्ग थे। मार्कस लिप्टन ने फरवरी 1953 में बताया कुल 6 हजार मौतें हुई लेकिन हाल में बताया गया कुल 12 हजार जानें गई थी
लंदन में वायु प्रदूषण 13वीं सदी से शुरू हुआ। 1301 में कोयला जलाने पर रोक लगी। 16वीं सदी तक हवा जहरीली हो गई। ग्रेट स्मॉग ब्रिटेन सबसे खतरनाक घटना रही। 1956 में क्लीन एयर एक्ट बना।
सर्दी के मौसम में लंदन के लोग घरों को गर्म रखने कोयला जलाते थे, जिसके धुएं से सल्फर डाई ऑक्साइड बनता था। लंदन के इलाकों में कोयला बेस्ड कई पॉवर स्टेशन थे जिससे जहरीली गैसें बढ़ीं।
लंदन मौसम विभाग के मुताबिक, शहर की हवा में रोज 1,000 टन स्मोक पार्टिकल्स, 140 टन हाइड्रॉलिक एसिड, 14 टन फ्लोरिन कंपाउंड्स, 370 टन सल्फर डाईऑक्साइड घुलती थी।
4 दिसंबर 1952 को ग्रेटर लंदन में कम दबाव की वजह से हवा बिल्कुल नहीं चल रही थी। ठंड के कारण हवा में प्रदूषण वाले तत्वों की अलग सतह तैयार हो रही थी। जिसके बाद इसका कहर देखने को मिला।