ईरान इजराइल को खुली धमकी दे रहा है कि अगर उसने गाजा पर हमले नहीं रोके तो अंजाम भुगतना पड़ेगा लेकिन क्या ईरान इस युद्ध में कूदेगा, इसकी संभावना बेहद कम है।
मध्य-पूर्व मामलों के जानकारों का कहना है कि इजराइल-हमास युद्ध में उतरना ईरान के लिए जोखिमों से भरा है। हालांकि, उसके इरादे युद्ध में उतरने के हो भी सकते हैं।
जानकार कहते हैं कि हिजबुल्लाह पहले इजरायल से उलझ रहा है। सीरिया की असद सरकार ईरान की सहयोगी है, इसलिए इजरायल-अमेरिका ईरान की धमकी को हल्के में नहीं ले सकते हैं।
विशेषज्ञ मानते हैं कि ईरान सीधे युद्ध में उतरने से पहले सौ बार सोचेगा। क्योंकि इसमें ईरान का गाजा जैसा हाल हो सकता है। इजराइल पहले ही ईरान को काफी नुकसान पहुंचा चुका है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, ईरान अपनी आदर्शवादी सोच और राजनैतिक व्यवहारिकता में संतुलन साधने की कोशिस कर रहा। इजराइल के खिलाफ युद्ध में उतरकर वह खुद को ही झुलसा सकता है।
ईरान हमेशा से ही इजरायल के अस्तित्व को नकारता है। इसी साल जून में ईरान ने एक मिसाइल परीक्षण कर दावा किया कि ये सुपरसॉनिक मिसाइल 400 सेकेंड में तेल अवीव को तबाह कर देगी।
ईरान के सत्ताधारी कट्टरपंथी भले ही धमके दी युद्ध चाहें लेकिन उन्हें जोखिम का अंदाजा भी है। इजरायल पर हमला कर उन्हें बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। उसके यहां भी विद्रोह उठ सकता है।
ईरान की बड़ी आबादी को गाजा, लेबनान से ज्यादा खुद की चिंता है। इसलिए इजराइल पर हमला कर ईरान खुद के लोगों का विरोध झेल सकता है। इस बात का अंदाजा ईरानी सत्ताधारियों को भी है।
इतिहास गवाह है कि ईरान इजराइल-अमेरिका से उलझने से बचता है। उनका विरोध कर उसने मध्य-पूर्व में धाक जमाई है, इसलिए मौके का फायद उठा फिलिस्तीनियों का खुदगर्ज बनना चाहता है।