इजराइल-हमास युद्ध का असर सबसे जिन देशों पर पड़ेगा, उनमें मिस्र भी शामिल है, जो इजरायल और गाजा दोनों से सीमा साझा करता है। उसका भी काफी कुछ इस युद्ध में दांव पर लग गया है।
अरब देशों और इजरायल के बीच जंग से मिस्र का गहरा संबंध रहा है। इतिहास में देखें तो मिस्र इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संबंधों में एक संतुलन बनाने का काम करता रहा है।
अरब देशों की तरह मिस्र भी शुरू से ही फिलिस्तीन का खुलकर समर्थन करता रहा है। अरब-इजरायल युद्धों में भी वह अरबों की तरफ से अहम पक्ष रहा था।
मिस्र भौगोलिक तौर पर गाजा के पास है, इसलिए वहां कुछ भी होने का सीधा असर मिस्र पर होगा। हमास हमले के बाद मिस्र ने इजरायल को आक्रमणकारी, हमास को शिकार की तरह पेश किया।
गाजा पट्टी खाली कराने, दोनों पक्षों की मध्यस्थता और मानवीय मदद से मिस्र अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है लेकिन इजरायल से आपसी संबंधों के चलते उसे भी नाराज नहीं करना चाहता है।
1928 से सक्रिय मुस्लिम ब्रदरहुड को मिस्र ने 2013 में खत्म कर दिया था। हमास इसी संगठन से पैदा हुआ है, इसलिए मिस्र हमास को अपने लिए भी खतरे के तौर पर देखता है।
मिस्र ने फिलिस्तीनियों को सिनाई इलाके में भेजने से इनकार कर दिया है। गाजा के लोगों को सीमा पार करने के भी खिलाफ है। फिलिस्तीनियों को प्रवेश देकर वह खुद की सुरक्षा खोना नहीं चाहता।
गाजा से आए शरणार्थी हमास का हिस्सा हो सकते हैं जो मिस्र में अस्थिरता पैदा कर देंगे। सिनाई प्रायद्वीप से इजरायल पर हमला हो सकता है, जो मिस्र से इजराइल के संबंध को खराब कर देगा।