इजराइल को मान्यता देने वाला ईरान 1979 में इस्लामिक क्रांति के बाद पलट गया। अयातुल्लाह रुहोल्लाह खामनेई ने ईरान में इस्लामिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया और इजराइल से संबंध तोड़ लिए।
ईरान-इजराइल के लोगों के एक-दूसरे के यहां यात्रा पर प्रतिबंध लग गए। तेहरान में इजराइल के दूतावास को फिलिस्तीन दूतावास में बदला गया। ईरान दूसरे देशों से हमले करवाने लगा।
ईरान-अमेरिका की दुश्मनी जगजाहिर है। 1953 में ईरान के तत्कालीन पीएम मोहम्मद मोसद्दिक ऑयल इंडस्ट्री का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे, जो अमेरिका का नामंजूर था, उसने तख्तापलट करवा दिया।
अमेरिका को इसमें ब्रिटेन का साथ मिला। ईरान की सत्ता शाह रजा पहलवी को सौंप दी गई। इसके खिलाफ ईरान में क्रांति हुई रुहोल्लाह खुमैनी का उदय हुआ और अमेरिका-ब्रिटेन से संबंध बिगड़े।
ईरान में क्रांति कर सत्ता पलटने वाले खुमैनी रूढ़िवाद की ओर निकले और कई देश उनके दुश्मन बनते गए। पश्चिमी देशों के लिए ईरान का तेल और धार्मिक कट्टरता से दुश्मनी बढ़ती चली गई।
2023 में सऊदी अरब-ईरान के संबंध सुधरने की खबर आई लेकिन दोनों धुर विरोधी रहे हैं। इसका कारण क्षेत्रीय प्रभुत्व, धार्मिक मतभेद है। इस्लाम को मानने वाले दोनों के पंथ अलग हैं।
ईरान में शिया मुसलमान और सऊदी में सुन्नी हैं। खाड़ी के दूसरे देश भी शिया-सुन्नी में बंटकर ईरान और सऊदी अरब के अलग खेमे में नजर आते हैं। सऊदी के साथ यूएई, कुवैत, बहरीन, जॉर्डन हैं।
ईरान-पाकिस्तान की दोस्ती ककभी मिसाल थी। ईरान पाकिस्तान को मान्यता देने वाला पहला देश था। कई मौकों पर पाकिस्तान की मदद भी की लेकिन 1990 में पाक में सिया-सुन्नी विवाद से मतभेद बढ़े।
पाकिस्तान ने ईरान पर शियाओं को भड़काने का आरोप लगाया। ईरानी वायुसेना कैडेटों की हत्या से दुश्मनी कट्टर हो गई। 2023 तक स्थिति सुधरती दिखी लेकिन एक आंतकी हमले ने रिश्ते बिगाड़ दिए।