द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यहूदियों के लिए नए देश इजरायल का गठन हुआ था। इसके बाद इजरायल कई मुस्लिम देशों के निशाने पर आ गया था।
खुद का वजूद बचाने और सेल्फ डिफेंस के लिए इजराइल ने आत्मरक्षा के लिए इजरायल ने अपनी पूरी ताकत खुद को मजबूत करने में झोंक दी थी।
27 मई, 1967 को मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल नासिर ने ऐलान किया कि अरब के लोग इजरायल को खत्म करना चाहते हैं।
इसके बाद मिस्र और जॉर्डन के बीच एक समझौता, जिसमें कहा गया कि अगर इजरायल ने किसी एक पर हमला किया तो दूसरा देश जंग में उसका साथ देगा।
इसके बाद जून, 1967 में इजरायल-मिस्र सीमा पर जंग शुरू हो गई। धीरे-धीरे दूसरे इस्लामिक देश भी इजराइल के खिलाफ जंग में कूद गए।
इजरायल और मिस्र के बीच शुरू हुई जंग में जॉर्डन, इराक, कुवैत, सीरिया, सऊदी अरब, सूडान और अल्जीरिया जैसे देश भी शामिल हो गए।
इजराइल और 8 इस्लामिक देशों के बीच छिड़ी इस जंग को 'जून वॉर' के नाम से जाना जाता है। इजरायल पर हमले के लिए इन देशों ने जॉर्डन में अपना मिलिट्री बेस बनाया था।
इस्लामिक देश इजरायल पर अटैक करते इससे पहले ही 5 जून को इजरायल की एयरफोर्स ने मिस्र के 400 फाइटर जेट्स जमीन पर ही उड़ा दिए। इजराइल के इस हमले से दुश्मन देश घबरा गए।
इजरायल ने तय किया था कि अगर उसे जंग जीतनी है तो पहले अटैक करना होगा। इसके बाद इजरायल ने जॉर्डन के आर्मी बेस पर ताबड़तोड़ हमले किए।
इजराइल ने सभी 8 इस्लामिक देशों को सिर्फ 6 दिन में ही सबक सिखा दिया था। इस युद्ध के साथ ही इजराइल ने पूरी गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया था।
युद्ध में इजराइल के करीब 1 हजार सैनिक मारे गए थे। वहीं मिस्र के 15 हजार से ज्यादा सैनिकों की मौत हुई थी। साथ ही जॉर्डन के 6 हजार और सीरिया के भी 1 हजार सैनिक मरे थे।