सार

 अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर काफी लंबे समय से जारी है। बैंक ऑफ फिनलैंड के मॉडल बेस्ड एसेसमेंट के अनुसार विश्व स्तर पर जीडीपी की वृद्धि दर 0.7 होने की स्थिति में टैरिफ में बढ़ोत्तरी से आर्थिक विकास की गति और भी धीमी हो सकती है।

वॉशिंगटन.  अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर काफी लंबे समय से जारी है। बैंक ऑफ फिनलैंड के मॉडल बेस्ड एसेसमेंट के अनुसार विश्व स्तर पर जीडीपी की वृद्धि दर 0.7 होने की स्थिति में टैरिफ में बढ़ोत्तरी से आर्थिक विकास की गति और भी धीमी हो सकती है। व्यापार विवाद जारी रहने की वजह से अमेरिका और चीन के बीच व्यापार में कमी आई है। इससे अनिश्चिचता का जो माहौल बना है, उससे दुनिया के पैमाने पर निवेश और तैयार माल के  व्यापार में गिरावट आई है। शेयरों की कीमतों और सिक्योरिटीज मार्केट्स को लेकर जो खबरें आ रही हैं, उनसे पता चलता है कि संकट बढ़ता ही जा रहा है। बहरहाल, वित्तीय बाजार में जो संकट पैदा हो रहा है, उसे टाला जा सकता था। लेकिन बैंक ऑफ फिनलैंड ने जो आकलन पेश किया है, उससे साफ जाहिर होता है कि ट्रेड वॉर से फाइनेंशियल मार्केट्स में और भी बाधाएं आएंगी । इससे ग्लोबल जीडीपी ग्रोथ 2 फीसदी और नीचे गिर जाएगा।  

आज की तारीख में अमेरिका ने चीन से 70 फीसदी इम्पोर्ट पर एडिशनल टैरिफ लगा रखा है। इसके विरोध में चीन ने भी अपने यहां एडिशनल टैरिफ लगाया है। दोनों देशों के बीच ज्यादातर चीजों के व्यापार पर टैरिफ काफी बढ़ गया है। अमेरिका ने चीन से इम्पोर्ट पर पहले से जो टैरिफ लगा रखा है, उसके अलावा उसने यह भी घोषणा की है कि वह नॉर्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट से बाहर के देशों से कार और कार के पार्ट्स के इम्पोर्ट पर एडिशनल 25 प्रतिशत टैरिफ लगाएगा। 

2019 में बिगड़े रिश्ते
यह व्यापार युद्ध मई 2019 में तेज हुआ और अगस्त 2019 में एक बार फिर से भड़क उठा। सितंबर की शुरुआत में अमेरिका ने कई नए प्रोडक्ट्स पर फिर से एडिशनल टैरिफ लगाया। टैरिफ लगाने से व्यापार विवाद बढ़ा और इसके बाद व्यापार पर प्रतिबंध, कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने के साथ करंसी के मैन्युपुलेशन के आरोप भी लगाए गए। अब इस बात की पूरी संभावना है कि टेक्नोलॉजी तक पहुंच को लेकर होने वाले विवादों से ट्रेड वॉर तेज होगा। बहरहाल, ट्रेड वॉर के जारी रहने से विश्व स्तर पर अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है और ट्रेड पॉलिसी को लेकर वर्ल्ड ट्रेड अनसर्टेनिटी इंडेक्स में पिछले साल काफी बढ़ोत्तरी देखी गई है। 

आम तौर पर ऐसे मामलों में अमेरिका की यह स्ट्रैटजी रही है कि वह अपने ट्रेड पार्टनर पर अमेरिकी उत्पादों से प्रतिबंध हटाने का दबाव डालता है और करंसी की वैल्यू को बढ़ाता है, ताकि अमेरिकी उत्पाद बाजार की प्रतियोगिता में आगे रहें। इसके अलावा, वह कुछ घरेलू उत्पादों की बड़े पैमाने पर खरीददारी भी करता है। कुछ अर्थशास्त्री यह मानते हैं कि चीन पर टैरिफ लगाए जाने से अमेरिका को लंबे समय में फायदा हो सकता है, अगर वह अमेरिकी कंपनियों के लिए फाइनेंशियल सर्विसेस और इन्श्योरेंस मार्केट को ज्यादा खोले। 

कैसे शुरू हुआ ट्रेड वॉर
अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प ने 2016 के अपने इलेक्शन कैम्पेन में यह वादा किया था कि वे चीन के साथ भारी व्यापार घाटे को कम करने के लिए कड़े कदम उठाएंगे। उन्होंने दावा किया था कि चीन बड़े पैमाने पर गलत तरीके से व्यापार कर रहा है। ट्रम्प ने चीन पर बौद्धिक संपदा की चोरी, जबरन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और चीन में अमेरिकी कंपनियों के लिए बाजार उपलब्ध नहीं होने देने का आरोप लगाया था। ट्रम्प का कहना था कि अमेरिकी कंपनियों के लिए चीन के बाजार में पहुंच बनाना मुश्किल है, क्योंकि चीन की सरकार चीन की कंपनियों को सब्सिडी देती है। 

कब शुरू हुआ अमेरिकी-चीनी ट्रेड वॉर
अमेरिकी-चीनी ट्रेड वॉर 6 जुलाई 2018 को शुरू हुआ, जब अमेरिका ने चीन से होने वाले 34 बिलियन डॉलर के इम्पोर्ट पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया। यह साल 2018 और 2019 में लगाए जाने वाले टैरिफ में पहला था। इसके बाद अमेरिका और चीन ने एक-दूसरे के उत्पादों के इम्पोर्ट पर कई टैरिफ लगाए। दिसंबर 2019 में इसे लेकर दोनों देशों के बीच एक सैद्धांतिक समझौता हुआ। इसे फेज वन ट्रेड डील कहा गया। फेज वन ट्रेड डील पर दोनों देशों ने औपचारिक रूप से 15 जनवरी, 2020 को हस्ताक्षर किए। इसे 15 फरवरी, 2020 से लागू किया जाना था। 

क्या है फेज वन ट्रेड डील
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और चीन के मुख्य वार्ताकार उप प्रधानमंत्री लिउ ही ने 15 जनवरी, 2020 को व्हाइट हाउस में फेज वन ट्रेड डील पर दस्तखत किए। इस डील के मुताबिक, चीन अगले दो वर्षों के अंदर दूसरे इम्पोर्ट्स के अलावा 200 बिलियन डॉलर के अमेरिकी प्रोडक्ट्स और सर्विसेस लेने के लिए तैयार हो गया। इनमें चीन को 77 बिलियन डॉलर के मैन्युफैक्चरिंग उत्पाद, 52 बिलियन की एनर्जी, 32 बिलियन के कृषि सामान की खरीद के साथ 38 बिलियन की सर्विसेस लेनी थी। सर्विसेस में टूरिज्म, फाइनेंशियल सर्विसेस और क्लाउड सर्विसेस थीं। 

चीन यूएस एक्सपोर्ट के लिए कई चीजों पर से प्रतिबंध हटाने के लिए तैयार हो गया। इनमें बीफ, पोर्क, सी-फूड, डेयरी प्रोडक्ट्स, चावल, इन्फैंट फॉर्मूला, जानवरों का चारा और बायोटेक्नोलॉजी शामिल हैं। इस डील के तहत अमेरिका ने 15 दिसंबर को 15 प्रतिशत नया टैरिफ लगाए जाने की योजना को रद्द कर दिया। यह टैरिफ 162 बिलियन डॉलर कीमत के चीनी उत्पादों पर लगाया जाना था। इसके साथ ही 110 बिलियन डॉलर के चीनी उत्पादों के इम्पोर्ट पर टैरिफ 7.5 प्रतिशत कर दिया गया। इसके बदले में चीन ने भी उस दिन लगाए जाने वाले टैरिफ को रद्द कर दिया।

फेज वन ट्रेड डील की क्या है स्थिति
जनवरी 2020 से कोरोनावायरस महामारी फैलने के बाद यह सवाल उठा कि क्या चीन फेज वन ट्रेड डील के प्रावधानों को मानने के लिए तैयार है या ऐसा कर पाने में सक्षम है। चीन के पूर्व अधिकारियों ने कई बार इस बात को कहा कि चीन डील के तहत किए गए प्रावधानों को मानेगा और कृषि संबंधी वस्तुओं की खरीददारी करेगा। लेकिन कोरोनावायरस महामारी की वजह से चीन ऐसा नहीं कर सका। वहीं, फरवरी के अंत में अमेरिका के ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव रॉबर्ट लिग्थिजर और अमेरिका के एग्रीकल्चर सेक्रेटरी सोनी पर्ड्यू ने कहा कि चीन एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट्स खरीदने के लिए तैयार है।  

फरवरी में चीन वे कई फूड प्रोडक्ट्स पर से प्रतिबंध हटा लिया। इनमें पेट फूड प्रोडक्ट, चिपिंग पोटैटोज, इन्फैन्ट फॉर्मूला, पॉल्ट्री और बीफ प्रोडक्ट्स शामिल थे। चीन ने टैरिफ कम करने के लिए कई घोषणाएं की। चीन ने इम्पोर्टर्स को टैरिफ में छूट के लिए भी एक प्रक्रिया शुरू की। वहीं, चीन ने अमेरिकी पोर्क और सोयाबीन खरीदना शुरू किया। 

अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर में अब आगे क्या
जब फेज वन ट्रेड डील साइन किया गया, तब ट्रम्प ने इस बात पर जोर दिया था कि फेज 2 डील भी जल्दी शुरू किया जाएगा और चीन की सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी के मसले पर बात की जाएगी, जो पहली डील में नहीं हो सकी। बहरहाल, लिउ के रवैये से इस मामले में तेजी नहीं आ सकी। वहीं, जनवरी 2020 में कोरोनावायरस महामारी के लगातार फैलते जाने से व्यापार संबंधी वार्ताएं अनिश्चचित काल के लिए स्थगित हो गईं। 

प्रेसिडेंट ट्रम्प अभी तक ट्रेड टैरिफ को कम करने के लिए बनाए जा रहे दबाव का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि कोरोनावायरस महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है। अमेरिका और चीन द्वारा लगाए गए टैरिफ पहले की तरह ही बने हुए हैं और फेज 2 डील के लिए वार्ता रुकी हुई है। ऐसे में, यह कह पाना मुश्किल है कि अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर कब खत्म होगा।