सार

स्कॉटलैंड के Glasgow में COP26 शिखर सम्मेलन के दौरान जलवायु परिवर्तन (climate Change) पर दुनियाभर ने चिंता जताई। लेकिन संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एक नई रिपोर्ट ने इस दिशा में बातों से अधिक काम करने की चेतावनी दी है।

नई दिल्ली. जलवायु परिवर्तन (climate Change) की दिशा में अनुकूलन प्रयासों(adaptation efforts) में तेजी आई है। हाल में स्कॉटलैंड के Glasgow में COP26 शिखर सम्मेलन के दौरान जलवायु परिवर्तन (climate Change) पर दुनियाभर ने चिंता जताई। लेकिन अक्टूबर, 2021 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम  (UNEP) ने अनुकूलन गैप रिपोर्ट-2021(Adaptation Gap Report 2021) जारी की है। यह रिपोर्ट प्रोडक्शन गैप का विश्लेषण करती है। यानी जीवाश्म ईंधन उत्पादन के लिए विभिन्न देशों की की योजनाएं और दुनिया के स्तर पर जलवायु सीमाओं(पेरिस जलवायु समझौता) के बीच उनकी सहमति-असहमति के अंतर का विश्लेषण करती है। ताजा रिपोर्ट ने दुनिया को चेतावनी दी है। 

विकासशील देशों पर उठे सवाल
(UNEP) की अनुकूलन गैप रिपोर्ट-2021 ने विकासशील देशों की कोशिशों पर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों में अनुकूलन की लागत और उसके लिए पैसों की जरूरत मौजूदा हालात में 10 गुना ज्यादा है। उदाहरण के तौर पर ये देश ग्लोबल वार्मिंग(Global warming) रोकने की दिशा में किए जा रहे उपायों पर सिर्फ 1 रुपए खर्चा कर रहे, जबकि जरूरत 10 रुपए की है। इस समय इस दिशा में 66 से अधिक देशों में 2600 से अधिक प्रोजेक्ट चल रहे हैं।

COP26 शिखर सम्मेलन में मोदी ने भी दी थी चेतावनी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  COP26 शिखर सम्मेलन में भारत की ओर से जलवायु कार्रवाई की एजेंडे(climate action agenda) प्रस्तुत करते हुए चेतावनी दी थी कि छोटे द्वीप और विकासशील राज्यों को जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक खतरा है। उनके लिए यह जीवन और मृत्यु का मामला है। उनके अस्तित्व के लिए एक चुनौती है। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आपदाएं उनके लिए तबाही का कारण बन सकती हैं। यह न केवल उनके जीवन के लिए, बल्कि उनकी अर्थव्यवस्था के लिए भी एक चुनौती हैं। बता दें कि अनुकूल उपायों के बावजूद दुनिया के कई देश बेमौसम बाढ़ और सूखा का सामना कर रहे हैं। वहीं,बढ़ता समुद्री जलस्तर जैसी अन्य चुनौतियां भी सामने हैं। इस दिशा में किए जा रहे उपायों के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों का अभाव है। ‘Adaptation Gap’ रिपोर्ट के जरिये सचेत किया गया कि पुख़्ता जलवायु कार्रवाई के बग़ैर दुनिया को गम्भीर मानवीय व आर्थिक क्षति झेलनी पड़ सकती है।

जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन के लिए खामियां
‘Adaptation Gap’ रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए दुनिया की तैयारियों में काफी खामियां हैं। रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक विकासशील देशों के लिए अनुकूलन की लागत 14,000 से 30,000 करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष के बीच होगी। वहीं 2050 में यह बढ़कर 28,000 से 50,000 करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष तक पहुंच सकती है। यानी विकसित और अधिक आय वाले देशों ने विकासशील देशों को जो सहायता करने का वादा किया है, वो पूरा कर पाएंगे, इसे लेकर संशय है।

पिछले साल दिया गया फंड काफी नहीं था
UNEP की रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों को जलवायु शमन और अनुकूलन योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए 'जलवायु वित्त 2019' में 7,960 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया था। 2020 में 10,000 करोड़ डॉलर का फंड जुटाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन यह पूरा नहीं हाे सका। UNEP ने चेतावनी दी है कि विकासशील देशों में जो अनुकूलन की अनुमानित लागत है, वो दिए जा रहे पैसों से 5-10 गुना ज्यादा है। यह अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है।

कोरोनाकाल में मदद बढ़ी
UNEP की रिपोर्ट के अनुसार, खतरे के बावजूद अब इस दिशा में अधिक देश सजग हुए हैं। करीब 79 फीसदी देशों ने राष्ट्रीय स्तर पर कम से कम एक अनुकूलन योजना उपकरण जैसे कि योजना, रणनीति, नीति या कानून को अपनाया है। 2020 के बाद से इसमें 7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। ऐसा कोरोना की वजह से भी हुआ। रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 महामारी से लड़ने और अर्थव्यवस्थाओं को दोबारा पटरी पर लाने के लिए दी जा रही मदद जलवायु अनुकूलन के लिए भी एक अच्छा अवसर साबित हुई है। दुनियाभर में इसके लिए 16.7 लाख करोड़ डॉलर की सहायता राशि का ऐलान किया जा चुका है। हालांकि 66 देशों में से एक तिहाई से भी कम देशों ने जून 2021 तक कोविड-19 के खिलाफ उपायों के रूप में जलवायु जोखिमों को दूर करने के लिए फंड जारी किया था।

2.7 डिग्री तक बढ़ सकता है टेम्परेचर
इस सदी के अंत तक दुनिया का तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने का अनुमान है, जबकि COP26 शिखर सम्मेलन  यह टेम्परेचर 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक कम करने पर जोर दिया गया है। बता दें कि 2009 में विकसित देशों ने 2020 से हर साल 10,000 करोड़ डॉलर की वित्तीय सहायता देने पर सहमति दी थी। 2015 में हुए पेरिस समझौते के तहत भी इस पर सबने सहमति दिखाई थी। लेकिन इस पर किसी ने गंभीरता नहीं दिखाई।

UNEP की चिंता
UNEP के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन(Inger Andersen) ने कहा, "जैसा कि दुनिया ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहती है, ऐसे प्रयास कहीं भी पर्याप्त और मजबूत नहीं हैं। अगर हम आज ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का नल बंद कर देते हैं, तब भी इसका असर कई दशकों तक जलवायु परिवर्तन के तौर पर हमारे साथ रहेगा। इसलिए जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान और नुकसान को कम करने के लिए पैसा और कार्यान्वयन के लिए अनुकूलन महत्वाकांक्षा में एक कदम बदलाव की जरूरत है। और हमें अभी इसकी आवश्यकता है।

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