भभुआ विधानसभा सीट सासाराम लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। बिहार का ये इलाका यूपी से सटा हुआ है और यहां यूपी के राजनीतिक दलों का प्रभाव भी नजर आता रहा है।
लोकतंत्र की हर प्रक्रिया में हर एक वोट की कीमत है। ऐसे दर्जनों मौके आए हैं जब एक-एक वोट के लिए जंग हुई है और नेताओं को वोटों की कीमत का ज्ञान हुआ है।
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर नजदीकी फाइट देखने को मिली थी। यहां एक हजार से भी काफी कम मतों से हार-जीत का फैसला हुआ था।
2015 में यहां एनडीए के सामने सीधी लड़ाई में बसपा उम्मीदवार मोहम्मद जमा खान थे। बीजेपी की ओर से मैदान में सीटिंग एमएलए बृजकिशोर बिन्द थे। महागठबंधन के खाते में ये सीट जेडीयू के पास थी।
बिहार की बनमनखी सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। 2015 के चुनाव में बनमनखी सीट महागठबंधन में आरजेडी के खाते में थी।
आरा में बीजेपी ने तीन बार से लगातार चुनावी जीत हासिल कर रहे अमरेन्द्र प्रताप सिंह को मैदान में उतारा था। अमरेन्द्र के सामने आरजेडी की ओर से मोहम्मद नवाज आलम थे।
यहां के चुनावी इतिहास पर गौर करें तो कभी कांग्रेस, कभी जनता दल और कभी आरजेडी की ओर से मुस्लिम विधायक ही जीतते रहे हैं। बाद में ये सीट बीजेपी का दुर्ग बन गई।
शिवहर बाहुबली नेता आनंद मोहन (Anand Mohan) का गढ़ होने की वजह से राज्य की हाई प्रोफाइल सीटों में शुमार है। 2015 के चुनाव में भी यहां के नतीजों पर सबकी नजर थी।
नीतीश-लालू की जोड़ी ने चुनाव में बिहार की अस्मिता का मुद्दा बनाया था। दोनों नेताओं की जुगलबंदी ने बीजेपी के सूरमाओं को परेशान कर दिया था। चुनाव से पहले बेहद मजबूत नजर आ रही बीजेपी बिहार में घिर चुकी थी। लेकिन...
डेमोक्रेटिक प्रोसेस में कई बार एक वोट की अहमियत का पता चला है। 1984 में पंजाब की लुधियाना लोकसभा सीट पर हुआ चुनाव ऐसा ही था जिसमें हर वोट बेशकीमती हो गया था। ये चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक था।